दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को आतंकी फंडिंग के एक मामले में उम्रकैद की सजा सुनाते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान से कोई फंडिंग नहीं होती, तो कश्मीर घाटी में इस पैमाने पर हिंसा नहीं की जा सकती थी।
विशेष एनआईए न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने कहा कि वित्तपोषण आतंकवादी गतिविधियों सहित किसी भी ऑपरेशन की रीढ़ है। वर्तमान मामले में भी देखा जा सकता है कि धन कैसे जुटाया गया था और उन्हें पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के साथ-साथ नामित आतंकवादी हफीज सईद और अन्य हवाला कार्यों के माध्यम से कैसे प्राप्त किया गया था।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इन फंडों का इस्तेमाल अशांति पैदा करने के लिए किया गया था, जहां सार्वजनिक विरोध की आड़ में, बड़े पैमाने पर पथराव और आगजनी की आतंकी गतिविधियों को भी अंजाम दिया गया था। मलिक की भूमिका के बारे में अदालत ने कहा कि सरकार के नेक इरादों के साथ विश्वासघात करते हुए उसने राजनीतिक संघर्ष की आड़ में हिंसा को अंजाम देने के लिए अलग रास्ता अपनाया।
अदालत ने कहा, “दोषी का दावा है कि उसने अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन किया और एक शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व किया। हालांकि जिन सबूतों के आधार पर आरोप तय किए गए थे और जिनके लिए उसे दोषी ठहराया है, वह कुछ और ही बयां करते हैं।” अदालत ने यह भी माना कि बड़ी साजिश और बड़े पैमाने पर हिंसा और तबाही वित्त पोषण के बिना नहीं की जा सकती है। न्यायाधीश ने कहा, “इसलिए, मेरी राय में, यह उचित समय है कि यह माना जाए कि आतंकी फंडिंग सबसे गंभीर अपराधों में से एक है और इसके लिए कड़ी सजा दी जानी चाहिए।”
अदालत के आदेश में कहा गया है, “दोषी को यूएपीए की धारा 17 के तहत टेरर फंडिंग के अपराध का दोषी ठहराया गया है। दोषी उस समूह का हिस्सा था, जो आतंकवादी गतिविधियों के लिए जुटाई गई धनराशि प्राप्त कर रहा था और उसने 29 अप्रैल, 2015 को आरोपी अहमद शाह वटाली से 10 लाख रुपये प्राप्त किए थे।”