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बिजली महादेव रोपवे परियोजना के लिए वन भूमि पर 80 पेड़ काटे जाएंगे

80 trees will be cut on forest land for Bijli Mahadev Ropeway Project.

महत्वाकांक्षी बिजली महादेव रोपवे परियोजना की राह में सात हेक्टेयर वन भूमि और 80 पेड़ (10 चीड़ और 70 देवदार) आ रहे हैं। पेड़ों की कीमत 5 करोड़ रुपये से अधिक है। इसके अलावा रोपवे निर्माण कंपनी नेशनल हाईवेज लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड को प्रतिपूरक वनरोपण के लिए सरकार के पास 35 लाख रुपये और जमीन के बदले नेट प्रेजेंट वैल्यू (एनपीवी) के रूप में 42 लाख रुपये जमा कराने होंगे।

कंपनी की मशीनरी कुल्लू शहर से 4 किलोमीटर दूर पिरडी स्थित बेस स्टेशन पर पहुंच गई है, लेकिन निर्माण कार्य शुरू करने से पहले कंपनी को यह पैसा केंद्र सरकार के पास जमा कराना होगा। इसके बाद ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय परियोजना का काम शुरू करने के लिए अंतिम मंजूरी देगा।

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 5 मार्च को 284 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले बिजली महादेव रोपवे का वर्चुअल तरीके से भूमि पूजन किया था। आठ महीने बीत जाने के बाद भी कंपनी ने राशि जमा नहीं कराई है। परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य सितंबर 2025 है, लेकिन जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा करने में देरी से निर्माण में देरी हो सकती है, जिससे परियोजना की लागत बढ़ सकती है।

कुल्लू के वन प्रभागीय अधिकारी एंजल चौहान ने बताया कि बिजली महादेव रोपवे परियोजना पर काम शुरू करने के लिए अभी अंतिम मंजूरी नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि परियोजना के रास्ते में आने वाली जमीन, पेड़ और अन्य संपत्तियों के एवज में कंपनी को पहले केंद्र सरकार के पास 6 करोड़ रुपए जमा करवाने होंगे, तभी अंतिम अनुमति मिलेगी।

कुल्लू शहर के सामने खरल पहाड़ी पर प्राचीन शिव मंदिर वाले दर्शनीय तीर्थ स्थल पिरडी से बिजली महादेव तक यह रोपवे 2.33 किलोमीटर लंबा होगा और इसमें दो स्पैन होंगे। रोपवे के माध्यम से पर्यटक 10 मिनट में बिजली महादेव पहुंच सकेंगे, जबकि सड़क मार्ग से कुल्लू शहर से चंसारी गांव तक कार से लगभग 15 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। पूरी यात्रा में लगभग तीन घंटे लगते हैं।

कुछ स्थानीय लोग रोपवे का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे पवित्र स्थान की पवित्रता नष्ट हो जाएगी। उन्होंने स्थानीय देवता के आदेशों का भी हवाला दिया है। पर्यावरणविदों ने भी क्षेत्र की वहन क्षमता को लेकर चिंता जताई है। निवासियों की मांग है कि पवित्र स्थान पर बुनियादी सुविधाओं का विकास पहले किया जाना चाहिए और रोपवे का संचालन करने वाली कंपनी को सफाई की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

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