नई दिल्ली, 8 जून । सुपरनेचुरल हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘मुंज्या’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म ऑडियंस को हंसाने के साथ-साथ डराने में भी पूरी तरह से कामयाब रही है। फिल्म को आदित्य सरपोतदार ने डायरेक्ट किया है। वहीं योगेश चंदेकर ने कहानी लिखी है।
‘मुंज्या’ की कहानी 1952 में शुरू होती है, जिसमें एक युवा ब्राह्मण लड़के को मुन्नी नाम की लड़की से प्यार होता है, लेकिन उसका परिवार उसके खिलाफ होता है। जब इस बारे में लड़के की मां को पता चलता है, तो वह उसका जबरन जनेऊ संस्कार करवाती है।
लड़के के मन में मुन्नी के लिए प्यार बढ़ता जाता है। वह पास के एक जंगल में मुन्नी को पाने के लिए काला जादू करने लगता है और इसके लिए अपनी बहन की बलि देने को भी तैयार होता है, लेकिन यह खतरनाक अनुष्ठान उस वक्त उल्टा पड़ जाता है, जब बहन से छीना झपटी में उसे चोट लग जाती है और वह मर जाता है। उसका परिवार उसे उसी पेड़ के नीचे दफना देता है, जहां वह काला जादू करता था।
इसके बाद कहानी आज के समय में पहुंचती है। इसमें दिखाया जा है कि एक पुणे का रहने वाला लड़का बिट्टू (अभय वर्मा) कॉस्मेटोलॉजी का छात्र है, जो सुंदर और स्वभाव के शांत और शर्मीला है। वह अपनी मां पम्मी (मोना सिंह) और दादी (सुहास जोशी) के साथ रहता है। वह अपनी दोस्त बेला (शरवरी) को बेहद पसंद करता है, लेकिन दिल की बात कहने से डरता है।
कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब बिट्टू अपने पैतृक गांव में एक पारिवारिक शादी में जाता है और इस दौरान पुराने रहस्य सामने आने लगते हैं।
बिट्टू के चाचा एक खौफनाक पारिवारिक रहस्य का खुलासा करते हैं और बताते हैं कि उसकी दादी ही वह लड़की है, जिसने अनजाने में अपने भाई को मुंज्या नामक दुष्ट आत्मा बनाया था। इस राज को जानने के बाद बिट्टू को डरावनी शक्ति का सामना करना पड़ता है। मुंज्या महाराष्ट्र में एक प्रकार के भूत को कहते हैं।
मुंज्या बिट्टू को अपना मोहरा बनाता है और दादी को मार डालता है। अब मुंज्या यानी दुष्ट आत्मा का अगला निशाना बेला है। बिट्टू बेला को बचाना चाहता है, ऐसे में उसे एक उपाय सूझता है कि वो मुन्नी का पता लगा ले और उस दुष्ट आत्मा को खुश कर दे। काफी तलाश करने पर उसे पता चलता है कि मुन्नी कोई और नहीं… बल्कि बेला की दादी ही है।
ऐसे में बेला के प्रति दुष्ट आत्मा के बढ़ते जुनून को देख बिट्टू एक भूत भगाने वाले तांत्रिक (सत्यराज) की मदद लेता है।
‘मुंज्या’ हॉरर-कॉमेडी शैली में एक गेम-चेंजर के रूप में उभर कर सामने आई है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर और म्यूजिक सस्पेंस को बढ़ाता है, जिससे दर्शक कहानी से बंधे रहते हैं।
डायरेक्शन, स्क्रीनप्ले और सिनेमाटोग्राफी को बहुत ही बारीकी से तैयार किया गया है। अभय वर्मा और मोना सिंह ने शानदार एक्टिंग की है। वहीं शरवरी का किरदार भी काफी प्रभावशाली है।
दिनेश विजन और अमर कौशिक द्वारा निर्मित और मैडॉक फिल्म्स प्रोडक्शन के तहत बनी मूवी वाकई देखने लायक है।
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