November 24, 2024
National

नए आपराधिक कानूनों के लागू होने से पहले ममता बनर्जी ने इस मांग के साथ पीएम मोदी को लिखा खत नई दिल्ली, 21 (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने तीन आपराधिक कानूनों को लेकर अपना विरोध दर्ज किया है और इसे लागू नहीं करने का आग्रह भी किया है। बता दें कि ये तीनों आपराधिक कानून एक जुलाई से लागू होने हैं। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का पत्र ऐसे समय में आया है जब 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होने वाला है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खत में लिखा, ”आपको याद हो तो पिछले साल 20 दिसंबर को आपकी सरकार ने इन तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को एकतरफा और बिल्कुल भी बहस के बिना पारित कर दिया था। उस दिन लोकसभा के लगभग 100 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था और दोनों सदनों के कुल 146 सांसदों को संसद से बाहर निकाल दिया गया था। लोकतंत्र के उस काले समय में विधेयकों को तानाशाही तरीके से पारित किया गया। इस मामले की अब समीक्षा की जानी चाहिए। मैं अब आपसे आग्रह करती हूं कि कम से कम नए कानूनों को कार्यान्वयन करने की तारीख को टालने पर विचार करें।” उन्होंने आगे लिखा,” मेरा मानना है कि इन महत्वपूर्ण विधेयकों में किए गए परिवर्तनों को नए सिरे से विचार-विमर्श और जांच के लिए नव निर्वाचित संसद के समक्ष रखना उचित होगा। यह दृष्टिकोण नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों को प्रस्तावित कानून की गहन जांच करने का अवसर प्रदान करेगा।” –आईएएनएस एसके/एसकेपी

नई दिल्ली, 21 । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने तीन आपराधिक कानूनों को लेकर अपना विरोध दर्ज किया है और इसे लागू नहीं करने का आग्रह भी किया है।

बता दें कि ये तीनों आपराधिक कानून एक जुलाई से लागू होने हैं।

टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का पत्र ऐसे समय में आया है जब 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होने वाला है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खत में लिखा, ”आपको याद हो तो पिछले साल 20 दिसंबर को आपकी सरकार ने इन तीन महत्वपूर्ण विधेयकों को एकतरफा और बिल्कुल भी बहस के बिना पारित कर दिया था। उस दिन लोकसभा के लगभग 100 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था और दोनों सदनों के कुल 146 सांसदों को संसद से बाहर निकाल दिया गया था। लोकतंत्र के उस काले समय में विधेयकों को तानाशाही तरीके से पारित किया गया। इस मामले की अब समीक्षा की जानी चाहिए। मैं अब आपसे आग्रह करती हूं कि कम से कम नए कानूनों को कार्यान्वयन करने की तारीख को टालने पर विचार करें।”

उन्होंने आगे लिखा,” मेरा मानना है कि इन महत्वपूर्ण विधेयकों में किए गए परिवर्तनों को नए सिरे से विचार-विमर्श और जांच के लिए नव निर्वाचित संसद के समक्ष रखना उचित होगा। यह दृष्टिकोण नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों को प्रस्तावित कानून की गहन जांच करने का अवसर प्रदान करेगा।”

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