January 18, 2025
National

कोलकाता में शॉर्ट-टर्म एयर पॉल्यूशन से होती हैं 7.3 प्रतिशत मौतें : शोध

Short-term air pollution causes 7.3 percent deaths in Kolkata: Research

कोलकाता, 5 जुलाई । एक शोध से यह बात सामने आई है कि कोलकाता में कुल मौतों में से 7.3 प्रतिशत शॉर्ट-टर्म एयर पॉल्यूशन की वजह से होती है।

शोध के निष्कर्षों के अनुसार शोधकर्ताओं द्वारा सर्वेक्षण किये गए दस शहरों में से कोलकाता शॉर्ट-टर्म एयर पॉल्यूशन से संबंधित मौतों के मामले में तीसरे स्थान पर है।

इस मामले में सबसे अधिक मृत्यु दर दिल्ली में 11.5 प्रतिशत है, जिसके बाद वाराणसी में 10.2 प्रतिशत मृत्यु दर है।

भारत के शीर्ष संस्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के निष्कर्ष लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हुए।

दस प्रमुख भारतीय शहरों में किए गए शोध पर आधारित अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कोलकाता में होने वाली कुल मौतों में से 7.3 प्रतिशत (जो कि प्रति वर्ष 4,700 होती है) शॉर्ट-टर्म पीएम 2.5 उत्सर्जन के कारण होती हैं।

आईएएनएस के पास उपलब्ध रिपोर्ट की एक प्रति के अनुसार, कोलकाता में लोगों का अल्पकालिक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहना विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों से कहीं अधिक है।

यह आंकड़ा शोध के तहत शामिल शहरों के 7.2 प्रतिशत औसत से थोड़ा अधिक है, जो सर्वे किए गए सभी दस शहरों में सालाना 33,000 मौतों के बराबर है। सर्वेक्षण के अंतर्गत शामिल दस शहरों में से शिमला में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे कम था।

रिपोर्ट में कहा गया, ”हालांकि वायु प्रदूषण अभी भी यहां जोखिम भरा था, यहां सभी मौतों में से 3.7 प्रतिशत (59 प्रति वर्ष) मौतें पीएम 2.5 के शॉर्ट-टर्म के संपर्क में आने से हुई। यह डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देश मूल्य से अधिक है। शिमला के परिणाम वैश्विक साक्ष्य को पुष्ट करते हैं कि वायु प्रदूषण के संपर्क का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है।”

अशोका विश्वविद्यालय के त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज में सेंटर फॉर हेल्थ एनालिटिक्स रिसर्च एंड ट्रेंड्स की निदेशक और चेयर-इंडिया कंसोर्टियम की भारत प्रमुख डॉ. पूर्णिमा प्रभाकरन के अनुसार, ”इस शोध में दस शहरों में वायु गुणवत्ता की विविधता को शामिल किया गया और पहली बार यह दर्शाया गया कि वायु प्रदूषण के निम्न स्तर पर भी मृत्यु दर का जोखिम बना रहता है।”

उन्होंने कहा, ”यह जानकारी हमारी वायु गुणवत्ता प्रबंधन रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर देती है। जो वर्तमान में केवल नॉन एटेनमेंट (गैर-प्राप्ति) शहरों पर केंद्रित हैं। कम जोखिम सीमाओं को ध्यान में रखते हुए वर्तमान में वायु गुणवत्ता मानकों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। साथ ही मानव स्वास्थ्य की प्रभावी रूप से रक्षा करने के लिए क्षेत्रीय स्रोतों से स्थानीय स्रोतों की ओर रुख करने की भी आवश्यकता है।”

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