January 17, 2025
National

गुरुदेव ‘रविंद्रनाथ टैगोर’ का लेखन साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर, जानें अंग्रेजों को क्यों लौटाई ‘नाइट हुड’ की उपाधि?

The writings of Gurudev ‘Rabindranath Tagore’ are an invaluable heritage of the literary world, know why the title of ‘Knight Hood’ was returned to the British?

नई दिल्ली, 7 अगस्त। ‘गुरुदेव’ के नाम से मशहूर नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर एक विश्व प्रसिद्ध कवि, लेखक, दार्शनिक, संगीतकार, नाटककार, चित्रकार और समाज सुधारक थे।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर ब्रह्मो समाज के नेता थे, जो एक सुधारवादी हिंदू संप्रदाय था और सामाजिक न्याय में विश्वास करता था।

वह 20 वीं सदी के प्रारंभ में बंगाल और पूरे भारत में एक प्रमुख लेखक, कवि और कलाकार के साथ-साथ दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत रहे। उनकी कृतियों का एक विशाल संग्रह आज भी भारत के लिए अमूल्य धरोहर है।

इंग्लैंड में अपनी औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद टैगोर को अपनी बंगाली जड़ों से गहरा जुड़ाव था। टैगोर सिर्फ कलात्मक गद्य और कविता में ही माहिर नहीं थे, बल्कि उनके लेखन में व्यापक राजनीतिक और सामाजिक टिप्पणियां भी शामिल होती थीं, जो तत्कालीन ब्रिटिश शासन पर करारा चोट करती थी। उनकी कविताओं का संग्रह गीतांजलि ने बंगाली साहित्य को समृद्ध बनाने का काम किया। ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई होने के साथ-साथ रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य में अपने अनुकरणीय योगदान के लिए यह पुरस्कार पाने वाले पहले गैर-यूरोपीय भी थे। 2004 में शांतिनिकेतन में हुई चोरी में टैगोर का नोबेल पुरस्कार पदक चोरी हो गया था। जिसके बाद स्वीडिश अकादमी ने उन्हें दो प्रतिकृतियों, एक स्वर्ण और एक रजत, के रूप में फिर से पुरस्कार दिया।

ब्रिटिश सरकार ने 1915 में उन्हें नाइट की उपाधि दी। हालांकि, बाद में उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में इसे त्याग दिया था। उस दौर में जिस शख्स के पास नाइट हुड की उपाधि होती थी, उसके नाम के साथ सर लगाया जाता था लेकिन रवींद्रनाथ टैगोर ने जलियांवाला हत्याकांड की निंदा करते हुए अंग्रेजों को ये सम्मान वापस लौटा दिया था।

टैगोर ने अपनी पहली कविता 8 वर्ष की आयु में लिखी थी और 16 वर्ष की आयु में छद्म नाम ‘भानुसिम्हा’ के तहत उनका पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था। टैगोर की गीतांजलि, चोखेर बाली, गोरा, काबुलीवाला, चार अध्याय और घरे बाइरे सहित तमाम चर्चित रचनाएं हैं। उनकी कई रचनाओं पर फिल्में भी बनी है। उन्हें उनके गीत ‘एकला चलो रे’ के लिए भी याद किया जाता है ।

टैगोर ने दो देशों के राष्ट्रगान लिखे थे। जिसमें भारत के लिए “जन गण मन” और बांग्लादेश के लिए “आमार सोनार बांग्ला” शामिल है। इसके अलावा, कई लोग इस तथ्य को नहीं जानते हैं कि उन्होंने श्रीलंका के “श्रीलंका मठ” राष्ट्रगान के लिए प्रेरणा के रूप में कार्य किया। श्रीलंकाई संगीतकार आनंद समरकोन बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगोर से प्रभावित होकर राष्ट्रीय गान ‘श्रीलंका मठ’ के संगीत और गीत लिखे थे।

रवींद्रनाथ टैगोर ने 1921 में ‘शांति निकेतन’ की नींव रखी थी। जिसे आज सेंट्रल यूनिवर्सिटी ‘विश्व भारती’ के नाम से जाना जाता है। टैगोर विश्वभ्रमण करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने पांच महाद्वीपों के 30 से अधिक देशों की यात्रा की थी। उन्होंने उस समय की जानी मानी हस्तियों में शामिल अल्बर्ट आइंस्टीन, रोमेन रोलांड, रॉबर्ट फ्रॉस्ट, जीबी शॉ, थॉमस मान समेत कई लोगों से मुलाकात की और वैश्विक परिपेक्ष्य में विचार विनिमय किया। इसके साथ रवींद्रनाथ टैगोर का राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ बहुत ही अनोखा रिश्ता था।

टैगोर ने 1929 और 1937 में विश्व धर्म संसद में भाषण दिया। टैगोर साहित्यकार होने के साथ-साथ चित्रकला और संगीत के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किया। 1883 में टैगोर ने मृणालिनी देवी से विवाह किया और उनके पांच बच्चे हुए। उनकी पत्नी की मृत्यु 1902 में हुई और 80 वर्ष की आयु में 7 अगस्त, 1941 को उनका निधन हो गया।

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