नई दिल्ली, 2 सितंबर। 2 सितंबर 2023 ये वो तारीख है, जिसने भारत का नाम गर्व से ऊंचा किया। यही वो दिन था, जब भारत ने सूरज की स्टडी करने के लिए अपने पहले सौर मिशन, आदित्य-एल1 को लॉन्च किया था। हालांकि, इसे इसी साल चार जनवरी 2024 को हेलो कक्षा में स्थापित किया गया। आपको बताते हैं कि भारत ने इस मिशन पर कितना खर्च और इसके पीछे का मकसद क्या था।
इस मिशन की नीव रखी गई थी साल 2008 में। अंतरिक्ष विज्ञान सलाहकार समिति द्वारा की गई सिफारिशों के बाद इसकी रूपरेखा तैयार की गई। इस मिशन का उद्देश्य सौर कोरोना, प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सौर पवन के बारे में जानकारी इकट्ठा करना था। इसके लिए वित्तीय वर्ष 2016-2017 में तीन करोड़ का बजट आवंटित किया गया था। हालांकि, बाद में मिशन का दायरा बढ़ाया गया और यह लैग्रेंज बिंदु पर रखा जाने वाला एक व्यापक सौर और अंतरिक्ष पर्यावरण वेधशाला बन गया। इसलिए मिशन का नाम बदलकर आदित्य-एल1 कर दिया गया। आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को एल-1 बिंदू के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 178 दिन लगते हैं।
आदित्य-एल1, सूर्य की स्टडी करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित ऑब्जर्वेटरी (वेधशाला) कैटेगरी का भारतीय सौर मिशन है। सूर्य से पृथ्वी की दूरी लगभग 15 लाख किमी होने के कारण इस मिशन के माध्यम से सूर्य की स्टडी करना था। इस मिशन के लिए लगभग 400 करोड़ रुपये खर्च हुए। ये मिशन करीब पांच साल तक चलेगा। इस दौरान आदित्य सूर्य का अध्ययन करता रहेगा।
भारत का यह पहला ऐसा मिशन था, जिसके तहत सूर्य की निगरानी करनी थी। इसरो का इस मिशन के माध्यम से पता लगाने का मकसद था कि जब सूर्य एक्टिव होता है तो क्या होता है। इसलिए इसरो ने एल1 मिशन को लॉन्च किया, जिसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए 125 दिन का समय लगा।
लैग्रेंज पॉइंट्स अंतरिक्ष में वे विशेष स्थान हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी जैसे दो बड़े परिक्रमा करने वाले पिंडों की गुरुत्वाकर्षण शक्तियां एक-दूसरे को संतुलित करती हैं। इसका मतलब यह है कि एक छोटी वस्तु, जैसे कि अंतरिक्ष यान, अपनी कक्षा को बनाए रखने के लिये अधिक ईंधन का उपयोग किए बिना इन बिंदुओं पर रह सकती है। कुल पांच लैग्रेंज पॉइंट होते हैं, जिनमें से हर एक की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं।
एल1 को सौर अवलोकन के लिए लैग्रेंज बिंदुओं में सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। एल1, एल2 और एल3 बिंदु अस्थिर हैं, जिसका मतलब है कि एक छोटी सी गड़बड़ी के कारण कोई वस्तु उनसे दूर जा सकती है। इसलिए इन बिंदुओं की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों को अपनी स्थिति बनाए रखने के लिये नियमित दिशा सुधार की आवश्यकता होती है।
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