मुंबई, 12 सितंबर । बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता संजय दत्त ने बुधवार को ‘ट्रेजडी क्वीन’ मीना कुमारी और फिल्म निर्माता कमाल अमरोही की दिल को छूने वाली प्रेम कहानी की एक झलक साझा की, जिसे जल्द ही सिद्धार्थ पी मल्होत्रा द्वारा निर्देशित एक फीचर फिल्म में दिखाया जाएगा।
हिंदी फिल्म में इनके 20 साल के सफर को दिखाया जाएगा, जिसका समापन 1972 की मास्टरपीस ‘पाकीजा’ से होगा, जिसमें राज कुमार और नादिरा भी हैं।
संजय दत्त ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘इंस्टाग्राम’ पर पोस्ट के जरिए फिल्म का एक टीजर शेयर किया, जिसकी शुरुआत मीना कुमारी की तस्वीरों वाले पत्रों से होती है और बैकग्राउंड में आवाज कहती हैं, “मेरे अदीब, मेरे मिरशा, मेरे शहज़ादे, मेरी रुबाई।”
“एक फ़िल्मकार, एक प्रेरणा… उनकी शानदार प्रेम कहानी… एक सपना जिसने मरने से इनकार कर दिया… एक प्यार जो कब्र से परे चला गया… कमाल और मीना।”
1972 की फिल्म पाकीजा का मशहूर गाना ‘चलते चलते यूं ही कोई’ बैकग्राउंड में बजता हुआ सुना जा सकता है।
संजय ने कैप्शन में लिखा, “प्रिय साची और बिलाल, आपके नए वेंचर के लिए शुभकामनाएं। यह सफल हो! संजय मामू की ओर से हमेशा प्यार। इसे अवश्य देखना चाहिए।”
निर्देशक सिद्धार्थ पी मल्होत्रा ने एक बयान में कहा, “इस अविश्वसनीय सच्ची कहानी को निर्देशित करना एक बहुत बड़ा सम्मान है, हालांकि ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी है। उनका रिश्ता गहरे प्यार और कलात्मक सहयोग का था, जो 20 सालों से ज़्यादा समय तक फैला हुआ था। उनकी पहली मुलाक़ात से लेकर जब वह सिर्फ़ 18 साल की थीं और वह 34 साल के थे, निर्माण से लेकर शूटिंग और रिलीज़ तक, ‘पाकीज़ा’ की विरासत; उनकी कहानी मुझे एक सिनेमाई दुनिया बनाने का मौका देती है जहां प्यार, जुनून, भावना और संगीत एक बड़ी भूमिका निभाते हैं।”
उन्होंने कहा, “मुझे खुशी है कि मुझे भवानी अय्यर और कौसर मुनीर की शानदार टीम के साथ इरशाद कामिल और खुद उस्ताद एआर रहमान को फिल्म का संगीत देने का मौका मिला है। कमाल सर और मीना जी लंबे समय से मेरे आदर्श रहे हैं, न केवल सिनेमा में उनके बेजोड़ योगदान के लिए बल्कि अपने काम में उनके अदम्य उत्साह के लिए भी। मैं उनकी कहानी को सिल्वर स्क्रीन पर जीवंत करने के लिए बेहद उत्साहित हूं।”
दो महान हस्तियों के पोते, बिलाल अमरोही ने कहा कि इस अनकही प्रेम कहानी और फिल्म निर्माण के पीछे के संघर्ष को पर्दे पर लाना एक बड़ा सम्मान है।
उन्होंने कहा, “उनकी कहानी भारतीय सिनेमा की विरासत में एक खूबसूरत लेकिन दुखद अध्याय है। मैं दुनिया के दर्शकों को वह असली कहानी दिखाना चाहता हूं जो कोई और नहीं जानता…..”जो चुप रहेगी ज़बान-ए-खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का।”
उन्होंने बताया कि इसके लिए उनके दादा-दादी कमाल साहब और मीनाजी के बीच आदान-प्रदान किए गए 500 से अधिक हाथ से लिखे गए पत्रों और उनके जीवन को एक साथ विस्तार से बताने वाली व्यक्तिगत पत्रिकाओं से इनपुट लिए गए हैं।
हालांकि, फिल्म के बारे में कोई विवरण साझा नहीं किया गया, जिसकी घोषणा सारेगामा और लायनहार्ट सिनेमा द्वारा की गई थी।
अमरोही और मीना की मुलाकात 1952 की फिल्म “तमाशा” के फिल्मांकन के दौरान दिग्गज अभिनेता अशोक कुमार के जरिए हुई थी। दोनों एक-दूसरे के प्यार में पड़ गए और उसी साल शादी कर ली। रिपोर्टों के अनुसार, केवल अमरोही के दोस्त बाकर अली और मीना कुमारी की छोटी बहन मधु को इस बात की जानकारी थी।
इसके बाद दोनों ने 1953 में ‘दायरा’ जैसी फिल्मों में काम किया, जिसमें उनकी प्रेम कहानी को दर्शाया गया। हालांकि, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही। दोनों ने प्रतिष्ठित फिल्म ‘पाकीजा’ में भी साथ काम किया है, जो 14 साल बाद स्क्रीन पर आई।
फिल्म रिलीज होने के कुछ हफ्ते बाद मीना कुमार बीमार पड़ गईं और बाद में कोमा में चली गईं। दो दिन बाद 1972 में 38 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। बताया जाता है कि उनकी मौत का कारण लीवर सिरोसिस था।
अमरोही की मृत्यु 1993 में हुई, जो उनकी पत्नी मीना कुमारी की मृत्यु के इक्कीस साल बाद और 1983 में उनकी आखिरी फिल्म ‘रजिया सुल्तान’ बनाने के दस साल बाद हुई। उन्हें रहमताबाद कब्रिस्तान में मीना कुमारी के बगल में दफनाया गया था।
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