November 24, 2024
National

आरजी कर घोटाले के सिलसिले में तृणमूल विधायक के घर सीबीआई की छापेमारी

कोलकाता, 12 सितंबर । कोलकाता के सरकारी आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में वित्तीय अनियमितताओं की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की टीम गुरुवार को हुगली जिले के सेरामपुर विधानसभा क्षेत्र से चार बार के तृणमूल कांग्रेस विधायक डॉ. सुदीप्तो रॉय के घर पर पहुंची।

उत्तर कोलकाता के सिंथी क्रॉसिंग स्थित उनके आवास के अलावा सीबीआई अधिकारी पास ही में स्थित उनके निजी नर्सिंग होम में भी छापेमारी और तलाशी अभियान चला रहे हैं।

चार बार पार्टी विधायक रहे रॉय आर.जी. कर अस्पताल की रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष जैसे अन्य महत्वपूर्ण पदों पर हैं और पश्चिम बंगाल चिकित्सा भर्ती बोर्ड के सदस्य हैं।

वह पश्चिम बंगाल चिकित्सा परिषद के पूर्व अध्यक्ष भी हैं।

सीबीआई अधिकारियों की टीम दोपहर करीब 1.15 बजे विधायक के घर और कार्यालय पहुंची तथा छापेमारी और तलाशी अभियान शुरू किया।

टीम के कुछ सदस्य रॉय से आर.जी. कर अस्पताल में वित्तीय अनियमितताओं के सिलसिले में पूछताछ भी कर रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि रॉय का बयान भी दर्ज किया जाएगा।

रॉय के आवास पर सीबीआई की छापेमारी ऐसे समय में हुई है, जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों की तीन टीमें इसी सिलसिले में शहर और उसके बाहरी इलाकों में तीन अलग-अलग स्थानों पर छापे मार रहे हैं। इनमें आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष का पैतृक आवास भी शामिल है।

सूत्रों ने बताया कि सीबीआई की प्रारंभिक जांच में पता चला है कि आर.जी. कर से बायोमेडिकल कचरे की तस्करी वित्तीय घोटाले का एक बड़ा हिस्सा थी।

नियमों के अनुसार, किसी भी अस्पताल के बायोमेडिकल कचरे का निपटान एक खास प्रक्रिया के तहत किया जाना चाहिए, ताकि उसके दोबारा इस्तेमाल की आशंका खत्म हो जाए। लेकिन, आर.जी. कर के मामले में दोबारा इस्तेमाल की संभावना वाले जैविक कचरे जैसे सलाइन की बोतलें, इंजेक्शन की सिरिंज और सुई आदि का बड़ा हिस्सा निपटान की बजाय बाजार में बेच दिया गया।

प्रत्येक अस्पताल को एक निश्चित अवधि में अपने अधिकारियों द्वारा निपटाए जाने वाले बायोमेडिकल कचरे की मात्रा का रिकॉर्ड भी रखना होता है। अक्सर देखा गया है कि आर.जी. कर के मामले में एक निश्चित अवधि में निपटाए गए बायोमेडिकल कचरे की मात्रा, उसी अवधि में समान आकार के अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों द्वारा बताई गई मात्रा से काफी कम थी।

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