साहित्य सदन शताब्दी वर्ष समारोह के समापन सत्र को संबोधित करते हुए विधायक संदीप जाखड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि स्वामी केशवानंद जैसे सुधारकों ने जिन सामाजिक मुद्दों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, वे आजादी के 77 साल बाद भी भारत में मौजूद हैं।
जाखड़ ने याद किया कि 80 वर्षीय सुधारक स्वामी केशवानंद ने स्वतंत्रता से पहले गांव-गांव घूमकर बाल विवाह, अंतिम संस्कार के दौरान फिजूलखर्ची वाली दावतें और शराब की लत जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाई थी। इन प्रयासों के बावजूद, स्वामी केशवानंद की 52वीं पुण्यतिथि पर जाखड़ ने दुख जताया कि इनमें से कई मुद्दे, खासकर महंगे “रसम भोग” समारोह, सामाजिक दिखावे का एक रूप बने हुए हैं। उन्होंने नशे की लत के बढ़ते खतरे पर भी चिंता व्यक्त की, जिसने अनगिनत परिवारों को तबाह कर दिया है।
कवि संगोष्ठी प्रतियोगिता में भाग लेने वालों की प्रशंसा करते हुए जाखड़ ने कहा कि विद्यार्थियों ने जिस आत्मविश्वास और गुणवत्ता के साथ महिलाओं के शोषण जैसे मुद्दों को उठाया, उससे युवाओं में इन भयावहताओं का सामना करने के प्रति गुस्सा और दृढ़ संकल्प झलकता है।
स्वामी केशवानंद चैरिटेबल ट्रस्ट के सदस्य रामेश्वर लाल शास्त्री ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी एवं पूर्व सांसद स्वामी केशवानंद की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं तथा समाज को सही दिशा दिखाने में सक्षम हैं।
मेयर विमल थाटई ने आजादी के सात दशक बाद भी हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता न मिलने पर निराशा व्यक्त की। उन्होंने लगातार सरकारों की आलोचना की कि वे दक्षिणी राज्यों के दबाव में झुक गईं, जिससे आजादी के बाद देवनागरी का समर्थन करने वाले नेताओं के सपने पूरे नहीं हो पाए।
साहित्य सदन के अध्यक्ष सूर्यकांत रिणवा और एसकेएन आयुर्वेदिक अस्पताल के प्रभारी डॉ. संदीप वत्स ने कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत किया।
कवि संगोष्ठी के निर्णायक मंडल के प्रमुख प्रोफेसर सुरेश मक्कड़ ने 50 प्रतिभागियों में से सर्वश्रेष्ठ कलाकार का चयन करने की कठिनाई पर टिप्पणी की। विजेताओं को विशिष्ट अतिथियों द्वारा पुरस्कार प्रदान किए गए।
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