हताश और परेशान किसान विभिन्न मंडियों में उदास दिन बिता रहे हैं। त्योहारों का मौसम आ गया है, लेकिन किसानों के लिए खुश होने जैसा कुछ नहीं है। उनके लिए सब कुछ “रब्ब आसरे” (भगवान की दया) पर है।
नाहल गांव के किसान सतनाम सिंह पिछले छह दिनों से अपने नवजात जुड़वा बच्चों से दूर हैं। कारण यह है कि लोहियां मंडी में उनकी कटी हुई फसल नहीं बिकी है।
छह दिनों के बाद आखिरकार उनकी उपज का वजन तौलने की प्रक्रिया शुरू हुई और उन्होंने राहत की सांस ली। उन्होंने ट्रिब्यून से कहा, “मैं 15 अक्टूबर से मंडी में बैठा हुआ हूं, क्योंकि सरकार इस गंभीर समस्या के प्रति गंभीर नहीं है।” उन्होंने कहा कि छह दिनों के बाद भी उनकी उपज की खरीद नहीं की गई।
गट्टा मुंडी के किसान कासू बलविंदर सिंह ने मंडी में आठ दिन बिताए हैं। उन्होंने कहा, “हमारे लिए कोई त्यौहार नहीं है। मैं पिछले आठ दिनों से मंडी में हूं और आज मेरी कुछ उपज बारदाना में डाल दी गई।”
किसानों का कहना है कि इस साल दिवाली उनके लिए फीकी रहेगी। उनमें से ज़्यादातर को अभी तक अपनी उपज का कोई भुगतान नहीं मिला है।
मूसापुर के कृपाल सिंह कहते हैं कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्या करें। “हम कब तक यहां बैठे रहेंगे। अगर हम घर चले गए तो कोई हमारी फसल चुरा सकता है। लेकिन हमारे पास कोई और विकल्प भी तो नहीं है? कोई भी हमारे बारे में नहीं सोच रहा है,” वे कहते हैं।
किसान मंडियों में बैठकर अपनी उपज की खरीद का इंतजार कर रहे हैं ताकि उन्हें अपने कर्ज चुकाने के लिए पैसे मिल सकें। खिचीपुर के किसान संदीप सिंह कहते हैं, “हमें अपनी उपज के लिए जो भुगतान मिलता है, उससे हम अपने लिए कुछ नहीं कर पाते। सबसे पहले हमें साहूकारों का बकाया चुकाना होता है, फिर हम अगली फसल के लिए बीज और खाद खरीद पाते हैं। इस बार हालात बहुत मुश्किल हो गए हैं।”
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