June 17, 2025
Entertainment

निशिकांत कामत : कम उम्र में मुकाम हासिल कर दुनिया को रोमांचक ‘दृश्यम’ दिखाने वाले निर्देशक

Nishikant Kamat: The director who achieved success at a young age and showed the world the thrilling ‘Drishyam’

उम्र 50 साल, 16 साल का फिल्मी करियर और पांच हिंदी फिल्मों का डायरेक्शन। दिवंगत निर्माता-निर्देशक निशिकांत कामत की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उनके डायरेक्शन में तैयार पांचों फिल्में ब्लॉकबस्टर और दर्शकों की पसंदीदा लिस्ट में शुमार हुईं।

निशिकांत कामत, जिनका नाम सुनते ही ‘दृश्यम’ के सस्पेंस भरे दृश्य आंखों के सामने आ जाते हैं, जिन्होंने दर्शकों को स्क्रीन से बांधे रखा। उन्होंने ऐसी फिल्में बनाईं, जो आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं।

17 जून 1970 को मुंबई के दादर में जन्मे निशिकांत बचपन से ही फिल्मों के दीवाने थे। रामनारायण कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही उनका रुझान थिएटर की ओर हुआ। 11वीं कक्षा में थिएटर से जुड़ते ही उनके सपनों को पंख लग गए। यह वही जुनून था, जिसने उन्हें एक साधारण लड़के से असाधारण फिल्म निर्माता बनाया।

साल 2005 में मराठी सिनेमा में उनकी पहली फिल्म ‘डोंबिवली फास्ट’ ने धूम मचा दी। यह फिल्म उस साल की सबसे सफल मराठी फिल्मों में शुमार हुई और निशिकांत का नाम एक उभरते सितारे के रूप में चमक उठा।

साल 2008 में निशिकांत ने बॉलीवुड में कदम रखा। उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘मुंबई मेरी जान’ साल 2006 के मुंबई बम धमाकों पर आधारित थी। इस फिल्म ने उनकी संवेदनशील कहानी कहने की कला को सामने लाया।

इसके बाद ‘फोर्स’, मराठी फिल्म ‘लाय भारी’, ‘रॉकी हैंडसम’ और ‘मदारी’ जैसी फिल्मों ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा को साबित किया। लेकिन, साल 2015 में रिलीज हुई ‘दृश्यम’ मील का पत्थर साबित हुई, जिसने उन्हें असली पहचान दिलाई।

अजय देवगन, तब्बू और श्रिया सरन स्टारर इस फिल्म ने सस्पेंस और थ्रिलर के नए मानदंड स्थापित किए। दर्शक सांसें थामे यह सोचते रह गए कि ‘आगे क्या होगा?’

निशिकांत की यह खासियत थी कि वह साधारण कहानियों को असाधारण तरीके से पर्दे पर उतारते थे।

निशिकांत केवल निर्देशक ही नहीं, बल्कि एक कुशल अभिनेता भी थे। उन्होंने ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’, ‘404: एरर नॉट फाउंड’, ‘रॉकी हैंडसम’, ‘डैडी’ और ‘जूली 2’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। उनकी हर भूमिका में एक गहराई थी, जो उनके किरदारों को यादगार बनाती थी।

उनके करियर की सबसे खास बात यह थी कि उन्होंने केवल पांच हिंदी फिल्मों का निर्देशन किया, लेकिन हर फिल्म दर्शकों के दिलों में बस गई। ‘फोर्स’ में जॉन अब्राहम का दमदार एक्शन, ‘मदारी’ में इरफान खान की भावनात्मक गहराई और ‘दृश्यम’ का सस्पेंस, हर फिल्म में निशिकांत का जादू दिखा। उनकी फिल्में न केवल मनोरंजन करती थीं, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर सोचने के लिए भी प्रेरित करती थीं।

‘मुंबई मेरी जान’ में आतंकवाद के दर्द को उन्होंने इतनी संवेदनशीलता से दिखाया कि दर्शक भावुक हो उठे। वहीं, ‘मदारी’ में सिस्टम की खामियों को उजागर कर उन्होंने समाज को आईना दिखाया।

निशिकांत की कहानियों में एक खास बात थी कि वह अपने किरदारों को जीवंत कर देते थे। ‘दृश्यम’ का विजय सालगांवकर हो या ‘मदारी’ का राघव, हर किरदार दर्शकों के साथ एक गहरा रिश्ता जोड़ लेता था। उनकी फिल्में सिर्फ पर्दे की कहानियां नहीं थीं, बल्कि जिंदगी के उन पलों को दर्शाती थीं, जो हर इंसान को कहीं न कहीं छूते हैं।

निशिकांत कामत 17 अगस्त 2020 को लीवर की बीमारी के कारण दुनिया को अलविदा कह गए। उनकी कमी सिनेमा जगत के लिए एक बड़ा नुकसान थी। लेकिन, उनकी फिल्में आज भी हमें उनके जुनून, उनकी कहानियों और उनकी कला से रू-ब-रू कराती हैं। ‘दृश्यम’ का वह सस्पेंस, ‘मदारी’ की वह भावना और ‘फोर्स’ का एक्शन, सभी निशिकांत की अमर रचनाएं हैं। वह एक ऐसे निर्देशक थे, जिन्होंने कम समय में सिनेमा को एक नया आयाम दिया।

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