अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज ने गुरुवार को कहा कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह की शिअद से अलग हुए धड़े के प्रमुख के रूप में नियुक्ति ‘नैतिक रूप से गलत’ है, क्योंकि यह पिछले साल सिख धर्मगुरुओं द्वारा जारी ‘फरमान की भावना’ के खिलाफ की गई है।
विद्रोही अकाली नेताओं के नेतृत्व वाले गुट ने 11 अगस्त को पूर्व अकाल तख्त जत्थेदार ज्ञानी हरपीत सिंह को पार्टी का अध्यक्ष घोषित किया था। यह चुनाव शिअद द्वारा सुखबीर बादल को फिर से अपना प्रमुख चुने जाने के कुछ महीने बाद हुआ था।
सोमवार को संगठनात्मक चुनाव अकाल तख्त द्वारा गठित पैनल द्वारा कराया गया था, जिसे पहले शिअद ने खारिज कर दिया था। शिअद ने अपना स्वयं का सदस्यता अभियान चलाया और उसके बाद शिअद प्रमुख तथा अन्य पदाधिकारियों के चुनाव के लिए चुनाव कराया।
अप्रैल में सुखबीर के पुनः निर्वाचित होने के बाद अकाल तख्त ने पिछले वर्ष 2 दिसंबर के आदेश के माध्यम से गठित समिति के भाग्य पर चुप्पी साधे रखी थी।हालाँकि, विद्रोही नेताओं ने अपने गुट को “असली” शिअद कहा है।
‘आदेश की भावना के विरुद्ध’ मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए, गर्गज ने कहा कि अकाल तख्त के 2 दिसंबर के आदेश का उद्देश्य पार्टी को पुनर्गठित और पुनर्जीवित करना था और सभी गुटों को एक मंच पर लाना था। उन्होंने कहा, “लेकिन इसका अक्षरशः पालन नहीं किया गया।”
किसी का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि सभी ने “अकत तख्त की ‘मर्यादा’ की अनदेखी करते हुए अपने निहित स्वार्थों को सर्वोपरि रखा।” गर्गज ने यह भी कहा कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह को अलग हुए गुट का अध्यक्ष नहीं बनना चाहिए था क्योंकि यह “नैतिक रूप से गलत” था।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह कठिन समय है और सिख समुदाय को चुनौतियों का सामना करने के लिए एकजुट होना चाहिए।उन्होंने कहा, ‘‘जत्थेदार का पद किसी भी अन्य पद या ओहदे से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।’
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