भारत-पाकिस्तान सीमा पर कंटीली बाड़ के पार अपने खेतों में खेती करने की चुनौती से पहले से ही जूझ रहे अमृतसर के कक्कड़ और रानिया गांवों के किसानों को अब एक और झटका लगा है, क्योंकि उफनती रावी नदी ने उनकी लगभग 50 एकड़ उपजाऊ कृषि भूमि को निगल लिया है।
कक्कड़ के सुखराजबीर पाल सिंह गिल ने बताया कि तेज़ पानी ने तबाही मचा दी है, जबकि गाँव वाले ज़िंदा रहने के लिए जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा, “रावी नदी ने अपना रास्ता बदल दिया और हमारे खेतों में घुस गई। यह उपजाऊ ज़मीनों को बहाकर पाकिस्तान में चली गई। हम बस बेबस होकर देखते रह गए कि हमारी पुश्तैनी ज़मीन कैसे खत्म हो गई।”
ग्रामीणों के लिए, यह नुकसान सिर्फ़ आर्थिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है। सुखराजबीर ने दुख जताते हुए कहा, “यहाँ ज़्यादातर परिवार पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं। हमारी रोज़ी-रोटी चौपट हो गई है। हमें अपने खेतों तक पहुँचने के लिए पहले से ही सुरक्षा मंज़ूरी की ज़रूरत थी। अब, नदी ने हमारी वो ज़मीन छीन ली है जिस पर हम पीढ़ियों से काम करते आए थे।” उनके और उनके तीन भाइयों के पास लगभग 50 एकड़ ज़मीन थी, जिसमें से 15 एकड़ ज़मीन कटाव का शिकार हो गई है।
छह एकड़ ज़मीन के मालिक कुलबीर सिंह गिल ने राज्य और केंद्र सरकार दोनों पर सीमावर्ती ज़मीन मालिकों की दुर्दशा की अनदेखी करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “हम पहले से ही हाशिये पर जी रहे थे। कटाव ने हमारी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।” जसबीर सिंह ने कहा कि बाढ़ का पानी पूरी तरह से कम नहीं हुआ है, इसलिए उनका नुकसान जारी है। उन्होंने कहा, “कटाव जारी है। हमारी ज़मीन हमारी आँखों के सामने लगातार गायब होती जा रही है।”
रानिया गाँव के हरजीत सिंह ने कहा कि ज़मीन उनके लिए न सिर्फ़ आमदनी का ज़रिया थी, बल्कि उनकी पहचान भी थी। उन्होंने कहा, “इसे यूँ ही गायब होते देखना दिल दहला देने वाला है। हमें सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है क्योंकि हमारे खेत रावी और सक्की नाले (एक मौसमी नदी) के बीच पड़ते हैं।
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