October 21, 2025
Entertainment

यादों में यश : जिनके गुजरने से ‘नीला आसमान’ हमेशा के लिए सो गया…

Yash in memories: whose passing put the ‘blue sky’ to sleep forever…

आज बॉलीवुड में कई रोमांटिक फिल्मों के जरिए सिल्वर स्क्रीन के सहारे दिलों में उतरने का हुनर रखने वाले शख्सियत की बात करते हैं। आपने साल 2004 में आई फिल्म ‘वीर-ज़ारा’ का गाना ‘ऐसा देश है मेरा’ सुना होगा। इस गाने में पंजाब की धरती, इस धरती में बसने वाली मोहब्बत की खुशबू को ऐसे दिखाया गया था कि आज भी आप इस गाने को देख और सुनकर मुस्कुरा देंगे।

आखिर क्या वजह थी कि बॉलीवुड में मेनस्ट्रीम फिल्म बनाने वाला एक डायरेक्टर इतनी संजीदगी से पंजाब को अपनी फिल्मों में महसूस करता था?

दरअसल, पार्टिशन के बाद इस शख्स का परिवार पाकिस्तान से पंजाब के लुधियाना आ गया था। घरवाले चाहते थे वो इंजीनियरिंग करें, लेकिन उनको पंजाब से मोहब्बत थी। इंजीनियरिंग नहीं की, पहुंच गए सीधे बंबई (अब मुंबई) और ‘ड्रीम सिटी’ में अपने सपनों का पीछा करना शुरू कर दिया। अपनी कड़ी मेहनत से हिंदी सिनेमा के आकाश पर अपनी चमक बिखेरने वाले उस शख्स का नाम यश चोपड़ा था।

अपने सपनों को पूरा करने के लिए उनसे पंजाब छूट गया, लेकिन दिल के तार हमेशा वहां से जुड़े रहे। इसकी झलक समय-समय पर उनकी फिल्मों में दिखती रही।

बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री को यश चोपड़ा से अलग करके देखना बेमानी है। भले ही यश चोपड़ा ने फिल्में डायरेक्ट की या फिर प्रोड्यूस, मोहब्बत उनकी फिल्मों की मेन थीम थी। कहा जाता था कि रोमांटिक फिल्म बनाने में यश चोपड़ा का कोई सानी नहीं था। इस बात के प्रमाण उनकी फिल्मों को देखकर भी मिलते हैं।

यश चोपड़ा ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने रोमांटिक फिल्मों के अलावा दूसरी जॉनर की फिल्में भी उतनी ही शिद्दत से बनाईं, जितनी शिद्दत से वह पंजाब की धरती से प्यार करते थे।

साल 1959 में यश चोपड़ा ने सामाजिक मुद्दे पर झकझोर देने वाली फिल्म ‘धूल का फूल’ से बॉलीवुड में शानदार आगाज किया। 1961 में उन्होंने ‘धर्मपुत्र’ फिल्म का निर्देशन किया और बॉलीवुड को बता दिया कि ‘शो मैन’ का शब्द उन्हीं के लिए गढ़ा गया है। 1975 में यश चोपड़ा ने ‘दीवार’ फिल्म से अमिताभ बच्चन की ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि गढ़ी, जो आज भी अमिताभ के नाम के साथ जुड़ा है।

‘वक्त’, ‘मशाल’, ‘त्रिशूल’, ‘दाग’ जैसी फिल्मों से यश चोपड़ा ने ‘कमर्शियली सक्सेस’ हासिल की और मसाला फिल्मों का एक नया दौर शुरू किया। उन्होंने यशराज बैनर्स को शुरू किया और जिंदगी की हर सांस फिल्म निर्माण से जोड़े रखी।

करीब पांच दशकों तक बॉलीवुड के रास्ते सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले यश चोपड़ा के बारे में कहा जाता था कि ‘वो एक्टर के डायरेक्टर थे।’ वो किरदार खुद गढ़ते और परदे पर उतारते थे।

मोहब्बत उनका सबसे पसंदीदा सब्जेक्ट रहा। उनकी फिल्मों में किरदार कोई भी हो, बस वो यश चोपड़ा के इशारे पर काम करते जाते थे। साल 1981 की फिल्म ‘सिलसिला’ न सिर्फ यश चोपड़ा, बल्कि अमिताभ बच्चन, रेखा, जया बच्चन के लिए मील का पत्थर साबित हुई। अमिताभ की निजी जिंदगी की उथल-पुथल को यश चोपड़ा ने पूरी ईमानदारी से परदे पर उतारा था।

‘लम्हे’ (1991) और ‘डर’ (1993), दोनों अलग टेस्ट और जॉनर की फिल्में थीं, मोहब्बत का किरदार अलग था, लेकिन लैंडमार्क मूवी बन गई। यश चोपड़ा को तमाम पुरस्कार मिले, सम्मान मिला, रुतबा मिला, लेकिन उनका दिल पंजाब की धरती में धड़कता रहा।

उनको पंजाब की धरती से दूर रहने का गम तो रहा, हालांकि खुशी रही कि फिल्मों में सफेद बर्फ से बिछी चोटियों और चिनार के लंबे-लंबे पेड़ के बीच पंजाब के सीने में बसा मोहब्बत वाला दिल हमेशा धड़कता रहा। आज भी यश चोपड़ा का नाम होठों पर आए तो एक गाना बरबस याद आ जाता है, ‘नीला आसमान सो गया, नीला आसमान सो गया।’ 21 अक्टूबर 2012 को यश चोपड़ा दूर आकाश के सफर पर निकल गए। उनके जाने के बाद लगता है कि सचमुच ‘नीला आसमान सो गया’ है।

यशराज फिल्म्स ने यश चोपड़ा के लिए काफी कुछ लिखा। उसका एक हिस्सा है, ”एक शानदार करियर का एक उपयुक्त अंत, दशकों के बेहतरीन काम को समेटने वाली एक फिल्म, शाहरुख खान, कैटरीना कैफ और अनुष्का शर्मा अभिनीत ‘जब तक है जान’ यश चोपड़ा की बतौर निर्देशक आखिरी फिल्म थी।

21 अक्टूबर 2012 को 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया और वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी। यह फिल्म 13 नवंबर 2012 को रिलीज हुई और दुनियाभर में इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली और यह साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में से एक रही।”

Leave feedback about this

  • Service