October 30, 2025
National

रामविलास के ‘चिराग’ : फिल्मी पर्दे के बाद राजनीति में ‘एक्शन’, ऐसा रहा ‘हनुमान’ का सफर

Ram Vilas’s ‘lamp’: After the film screen, ‘action’ in politics, this was the journey of ‘Hanuman’

साल 2011, फिल्म का नाम था ‘मिले ना मिले हम’। पर्दे पर उसकी नायिका थीं, बॉलीवुड की क्वीन कंगना रनौत। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह असफल रही, जिस युवा अभिनेता को लगता था कि यह उसका लॉन्चपैड होगा, उसके लिए यह अनुभव एक कड़वा सच बन गया। वह हीरो, जिसने कैमरे के सामने अपनी पूरी जान लगा दी थी, अचानक समझ गया कि उसकी नियति मुंबई की चकाचौंध में नहीं, बल्कि बिहार के राजनीति से दिल्ली तक फैली है।

वह युवा कोई और नहीं, बल्कि केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान हैं। एक ऐसा नाम जिसने राजनीति में आने से पहले इंजीनियरिंग की डिग्री ली, एक्टिंग में हाथ आजमाया, और अंततः अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए वापस जड़ों की ओर लौट आया। चिराग का जीवन किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है।

चिराग पासवान का जन्म 31 अक्टूबर 1982 को हुआ था। वह भारत के सबसे बड़े दलित नेताओं में से एक, राम विलास पासवान और रीना पासवान के पुत्र हैं।

शुरुआत में, उन्होंने कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री हासिल की। लेकिन दिल तो मुंबई की मायानगरी में था। चिराग ने बॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। साल 2011 में, उनकी पहली और एकमात्र फिल्म ‘मिले ना मिले हम’ रिलीज हुई। इस फिल्म में उन्होंने लीड रोल निभाया, लेकिन यह दर्शकों के दिलों में जगह नहीं बना पाई।

फिल्म की असफलता ने चिराग को एक गहरा सदमा दिया। वह समझ गए कि यह उनका क्षेत्र नहीं है। यह क्षण उनके जीवन का एक बड़ा मोड़ था। यदि वह फिल्म सफल हो जाती, तो शायद आज चिराग किसी स्टूडियो के सेट पर होते, लेकिन उस असफलता ने उन्हें वापस उसी जगह पहुंचा दिया, जहां उनके पिता वर्षों से एक ‘महानायक’ रहे थे।

फिल्मी पर्दे से उतरकर चिराग ने अपने पिता रामविलास पासवान के मार्गदर्शन में राजनीति की बारीकियां सीखनी शुरू की। रामविलास पासवान की छाया में चिराग ने जमीनी हकीकत को समझना शुरू किया। उन्हें जल्द ही समझ आ गया कि राजनीतिक मैदान में सफल होने के लिए सिर्फ नाम काफी नहीं है, बल्कि जनता से सीधा जुड़ाव और एक स्पष्ट दृष्टि चाहिए।

साल 2014 में चिराग ने बिहार की जमुई लोकसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा। यह उनके लिए अग्निपरीक्षा थी। फिल्मी दुनिया में असफल हुए चिराग ने राजनीति के पहले ही प्रयास में शानदार जीत हासिल की।

2019 में उन्होंने जमुई सीट पर अपनी जीत को दोहराया। इस बीच, उन्होंने पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और अपने पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पार्टी की रणनीतियों में शामिल रहे। पिता-पुत्र की यह जोड़ी राजनीति में एक भावनात्मक स्तंभ के रूप में काम कर रही थी।

चिराग पासवान के जीवन में सबसे बड़ा और मार्मिक मोड़ 2020 में आया। उनके पिता, रामविलास पासवान का निधन हो गया। इस क्षति ने न सिर्फ चिराग को भावनात्मक रूप से तोड़ दिया, बल्कि लोक जनशक्ति पार्टी की पूरी बागडोर अचानक उनके कंधों पर आ गई। पिता के निधन के तुरंत बाद, पार्टी में दरार पड़ गई। उनके चाचा, पशुपति पारस और पार्टी के अन्य सदस्यों ने चिराग के नेतृत्व को चुनौती दी, जिसके कारण लोजपा दो गुटों में बंट गई। चिराग को पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न के लिए कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़नी पड़ी।

इस मुश्किल समय में चिराग ने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नया नारा दिया। उन्होंने खुद को सिर्फ दलित नेता की विरासत का वाहक नहीं बताया, बल्कि एक युवा, आधुनिक नेता के रूप में पेश किया, जिसकी प्राथमिकता बिहार का विकास है।

उन्होंने अपने पिता की ‘लोक जनशक्ति पार्टी’ का नाम बदलकर ‘लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास)’ रखा। उन्होंने इस चुनौती को एक अवसर में बदल दिया। उन्होंने आधुनिक संवाद शैली अपनाई, सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे और रैलियों में बिहारियों के सामने अपनी बात रखी।

चिराग पासवान के संघर्ष और रणनीति का सबसे शानदार परिणाम 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला। अपनी पार्टी को एनडीए में मजबूती से स्थापित करते हुए, उन्होंने बिहार में ‘गेम चेंजर’ की भूमिका निभाई। उनकी पार्टी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा और अविश्वसनीय रूप से 100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के साथ जीत हासिल की।

खुद को पीएम मोदी का ‘हनुमान’ कहने वाले चिराग ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने पिता की पारंपरिक सीट, हाजीपुर से चुनाव लड़ा। हाजीपुर की सीट रामविलास पासवान के लिए भावनात्मक और राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण थी। चिराग ने इस सीट पर 1.70 लाख से अधिक वोटों के विशाल अंतर से जीत हासिल की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में उन्हें जगह मिली।

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