कपड़ा नगरी में तापमान में गिरावट के साथ वायु गुणवत्ता बिगड़ने लगी है। दो प्रमुख प्रदूषक, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम 10, अब नागरिकों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने लगे हैं। नतीजतन, एलर्जी, खांसी, जुकाम, गले में खराश और आँखों में जलन की शिकायतों में अचानक वृद्धि हो गई है। यहाँ के सिविल अस्पताल में रोज़ाना 40-50 मरीज़ उपरोक्त समस्याओं के साथ आ रहे हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, रविवार को शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 252 रहा और पीएम 2.5 461 तथा पीएम 10 496 दर्ज किया गया। सीपीसीबी एक्यूआई को 0-50 अच्छा, 51-100 संतोषजनक, 101-200 मध्यम, 201-300 खराब, 301-400 बहुत खराब और 401-500 गंभीर श्रेणी में रखता है।
सांस लेने में समस्या बढ़ रही है वायु प्रदूषण के कारण क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। ओपीडी में रोजाना सर्दी, खांसी और बुखार के 40-50 मरीज आ रहे हैं। इस समय आपातकालीन वार्ड में सीओपीडी के 6-7 मरीज भर्ती हैं। — डॉ. सुखदीप कौर, सिविल अस्पताल
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने 22 अक्टूबर को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के चरण-2 को लागू किया। हालांकि, जमीनी स्तर पर इसका बहुत कम प्रभाव दिखाई दे रहा है।
पानीपत में, कई स्थानों पर अभी भी खुले में, विशेषकर रात में, कूड़ा जलाया जा रहा है, तथा यहां तक कि बॉयलर भी देर शाम को चालू हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शहर के ऊपर धुंध की मोटी चादर छा जाती है। एक सप्ताह से अधिक समय से वायु गुणवत्ता खराब और बहुत खराब श्रेणी में बनी हुई है, तथा पीएम 2.5 और पीएम 10 खतरनाक रूप से 500 के स्तर को छू रहे हैं।
सिविल अस्पताल की आपातकालीन चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. सुखदीप कौर ने बताया, “वायु प्रदूषण के कारण क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। ओपीडी में रोजाना सर्दी, खांसी और बुखार के 40-50 मरीज पहुंच रहे हैं। इस समय आपातकालीन वार्ड में सीओपीडी के 6-7 मरीज भर्ती हैं।”
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, शहर में धुंध के कारण ब्रोन्कियल अस्थमा के रोगियों, विशेषकर बच्चों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।
पर्यावरणविद् अमित कुमार ने कहा कि भले ही CAQM ने GRAP-2 लागू कर दिया है, लेकिन नतीजे दिखाई नहीं दे रहे हैं। पेड़ों और सड़कों पर पानी का छिड़काव नहीं हो रहा है। सफाई भी हाथ से की जा रही है, जिससे धूल के कण हवा में तैर रहे हैं। यहाँ तक कि कचरा भी जलाया जा रहा है।


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