November 15, 2025
National

‘भूदान आंदोलन’ करने वाला ‘भारत रत्न’: जिनका काम आज की पीढ़ियों को भी करता है प्रेरित

Bharat Ratna who started the Bhoodan Movement: whose work continues to inspire generations today.

भारत की आजादी के बाद जब देश गांव-गांव में सामाजिक सुधार की राह तलाश रहा था, किसान बिन भूमि के तरस रहे थे और असमानता चरम पर थी, तब एक सादगी भरा व्यक्तित्व, आचार्य विनोबा भावे, और उनका भूदान आंदोलन के रूप में सामने आया।

गांधीजी के सबसे करीबी शिष्य, दार्शनिक, लेखक, समाज सुधारक और सच्चे गांधीवादी विनोबा भावे का जीवन निःस्वार्थ सेवा, अहिंसा और समानता का प्रतीक रहा। 1958 में वे रमन मैगसेसे पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय बने और मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनकी सबसे बड़ी देन ‘भूदान आंदोलन’ आज भी सामाजिक न्याय और गांव सुधार की मिसाल है। 15 नवंबर को उनकी पुण्यतिथि है।

11 सितंबर 1895 को महाराष्ट्र के गागोदे गांव में जन्मे विनायक नरहरि भावे (विनोबा भावे) बचपन से ही अध्ययन और चिंतन में रमे। गांधीजी के भाषण के बारे में अखबारों में छपी खबर से विनोबा काफी प्रभावित हुए और उन्होंने गांधीजी को पत्र लिखा। पत्रों के आदान-प्रदान के बाद गांधीजी ने उन्हें अहमदाबाद में व्यक्तिगत मुलाकात के लिए आने की सलाह दी।

भारत रत्न, स्वतंत्रता संग्राम में जेल भी गए, लेकिन आजादी के बाद वह राजनीति से दूर रहे। उनका मानना था कि असली आजादी तो गांव की गरीबी और असमानता मिटाने में है।

साल 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव में कुछ दलित मजदूरों ने विनोबा भावे से कहा, “हमें जमीन चाहिए, ताकि हम अपने परिवार का पेट भर सकें।” बस यहीं से शुरू हुआ भूदान आंदोलन। विनोबा भावे ने गांव के जमींदार से अपील की कि वे अपनी जमीन का कुछ हिस्सा गरीबों को दान करें। जमींदार ने 100 एकड़ जमीन दान की। उन्होंने इसे ‘भूदान’ नाम दिया, यानी जमीन का दान। इसके बाद विनोबा भावे पूरे देश में पैदल चलते हुए गांव-गांव गए। वे कहते थे “जय जगत” (विश्व विजय) और लोगों से कहते थे, “अगर आपके पास 6 भाई हैं, तो सातवें भाई (गरीब) के लिए भी जमीन दो।” देशवासी उनकी सादगी और सच्चाई से प्रभावित होकर जमीन दान करते थे। यह कोई कानूनी जबरदस्ती नहीं थी, बल्कि हृदय परिवर्तन का आंदोलन था। उन्होंने 500 एकड़ जमीन का लक्ष्य रखा था।

फिर क्या था, दक्षिण भारत से शुरू हुआ आंदोलन उत्तर भारत में भी फैल गया। बिहार और उत्तर प्रदेश में भी गहरे रूप में देखने को मिला। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता जयप्रकाश नारायण के साथ और भी बड़े नेता इस आंदोलन से जुड़े।

विनोबा भावे भूमि, जल, वायु, आकाश और सूर्य को ईश्वर का तोहफा मानते थे। उन्होंने विज्ञान को अध्यात्म से और स्वायत्त ग्राम को विश्व आंदोलन से जोड़कर देखा।

भूदान के बाद आंदोलन ने नया और बड़ा रूप ग्रामदान के रूप में पकड़ लिया, जिसकी शुरुआत उड़ीसा से शुरू हुई, जिसमें पूरा गांव अपनी जमीन सामुदायिक स्वामित्व में देता था। इसका मकसद था कोई भूमिहीन न रहे, सबको खेती का अधिकार मिले। इस आंदोलन में 44 एकड़ जमीन दान हुई और गरीबों में बांटी गई।

25 दिसंबर 1974 से 25 दिसंबर 1975 तक विनोबा भावे ने पूरा एक साल मौन रहने का व्रत लिया। यानी वे किसी से बोले नहीं, सिर्फ शांति और चिंतन में रहे। साल 1976 में उन्होंने गाय की हत्या रोकने के लिए उपवास किया। उनका मानना था कि गाय मां समान है और उसकी रक्षा करनी चाहिए।

विनोबा भावे प्रखर विद्वान थे, जो ज्ञान को सामान्य लोगों के लिए सुलभ बनाते थे। इसी कड़ी में उन्होंने भगवद्गीता का मराठी में सरल अनुवाद किया, जिसे ‘गीताई’ कहा जाता है। इसे उन्होंने धुलिया जेल में लिखा था। विनोबा भावे 1940 तक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी के रूप में रहे, मगर 1940 में ही पत्र लिखकर महात्मा गांधी ने देश को बताया कि वे देश के अग्रणी सेनानी हैं।

आम लोग भी इसे आसानी से समझ सकें, यही उनका उद्देश्य था। विनोबा भावे आज भी प्रासंगिक क्यों हैं, यह सवाल उठता है। आज जमीन की असमानता, गरीबी और ग्रामीण पलायन बड़ी समस्याएं हैं। ऐसे में भूदान का विचार बताता है कि समाधान जबरदस्ती में नहीं, स्वैच्छिक त्याग और सामुदायिक भावना में है। उनका काम आज की पीढ़ियों को भी प्रेरित करता है।

15 नवंबर 1982 को वह अपने पवनार आश्रम (महाराष्ट्र) में दुनिया से विदा हो गए।

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