November 20, 2025
National

राज्यपाल के पास बिल को हमेशा के लिए रोकने का कोई अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

The Governor has no power to permanently stall the bill: Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ कहा कि राज्यपाल विधानसभा से पास हुए बिलों को अनंत काल तक अपने पास नहीं लटका सकते। ऐसा करना संघीय ढांचे को गहरी चोट पहुंचाता है और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के कामकाज को पूरी तरह ठप कर देता है।

जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अगुवाई वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल के पास बिल को हमेशा के लिए रोकने का कोई अधिकार नहीं है। उनके सामने सिर्फ तीन रास्ते हैं। या तो बिल को मंजूरी दे दें, या एक बार पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेज दें, या अगर बिल संविधान की मूल भावना के खिलाफ लगता है, तो उसे राष्ट्रपति के पास भेज दें। कोर्ट ने यह भी कहा कि बिल को चुपचाप ड्रॉअर में बंद करके रखना संवैधानिक गतिरोध पैदा करता है, जो स्वीकार नहीं किया जा सकता।

संविधान पीठ ने ‘समय सीमा के बाद अपने आप मंजूरी’ यानी डीम्ड असेंट की मांग को पूरी तरह खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है और यह शक्ति-पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ होगी। साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह खुद आर्टिकल 142 के तहत बिलों को मंजूरी नहीं दे सकता, क्योंकि यह पूरी तरह राज्यपाल और राष्ट्रपति का क्षेत्र है।

हालांकि कोर्ट ने राज्यपालों की भूमिका को सिर्फ रबर स्टैंप नहीं माना। उसने कहा कि चुनी हुई सरकार ही गाड़ी की ड्राइवर सीट पर बैठती है, वहां दो लोग नहीं बैठ सकते, लेकिन राज्यपाल का रोल पूरी तरह औपचारिक भी नहीं है। सामान्य मामलों में उन्हें मंत्रिमंडल की सलाह माननी ही पड़ती है पर कुछ खास परिस्थितियों में वे अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अगर राज्यपाल जानबूझकर कोई कदम नहीं उठाते तो बिल के गुण-दोष में जाए बिना सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट उन्हें समयबद्ध तरीके से फैसला लेने का सीमित निर्देश दे सकता है। केरल, तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में लंबे समय से बिल लटकाने का विवाद चल रहा था। इस फैसले से अब राज्यपालों पर तुरंत फैसला लेने का मजबूत दबाव बनेगा और चुनी हुई सरकारों को बड़ी राहत मिलेगी।

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