राज्यसभा में गुरुवार को चुनाव सुधारों पर बहस पर बोलते हुए कांग्रेस के सांसद अजय माकन ने कहा कि हम दुनिया भर में बड़े गर्व से कहते हैं कि भारत मदर ऑफ डेमोक्रेसी है, भारत लोकतंत्र की जननी है। लेकिन जो तर्क आज हम सदन में रख रहे हैं वे चीख-चीखकर गवाही दे रहे हैं कि भारत में शायद यह जननी अब जीवित नहीं है।
अजय माकन ने कहा कि चुनाव आयोग को अपनी विश्वसनीयता बनानी पड़ेगी। अंपायर ही यदि किसी एक टीम की जर्सी पहन लेगा तो फिर दूसरी टीम क्या करेगी।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि 2024 में 16 मार्च को चुनाव घोषित किए गए और उससे एक महीना पहले कांग्रेस के सारे बैंक खाते सील कर दिए गए। हमने चुनाव आयोग को इस मामले में सूचित किया, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया। कांग्रेस पार्टी को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने 210 करोड़ रुपए का नोटिस भेज दिया। इसके बाद इनकम टैक्स विभाग ने हमारे बैंक अकाउंट से अपने आप 135 करोड़ रुपए निकाल लिए और फिर 23 मार्च को हमारे बैंक खाते खोले जाते हैं। चुनाव की घोषणा पहले ही 16 मार्च को की जा चुकी थी, ऐसे में प्रमुख विपक्षी दल किस प्रकार से चुनाव की तैयारी करेगा?
राज्यसभा में बोलते हुए अजय माकन ने कहा कि सरकार का सबसे बड़ा काम लोकतंत्र की रक्षा करना भी होता है, लेकिन उस काम में यह सरकार पूरी तरह विफल हो चुकी है। मैंने पार्टी का कोषाध्यक्ष होने के नाते व्यवसायियों से, बड़े उद्योगपतियों से बात की, लेकिन उन्होंने कहा कि हम आपको कुछ नहीं दे सकते क्योंकि जैसे ही हम आपको कुछ देते हैं तो एजेंसियां हमारे पीछे लग जाती हैं। ऐसी स्थिति में कैसे देश में लोकतंत्र जिंदा रहेगा?
उन्होंने हरियाणा विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि यहां चुनाव के उपरांत आयोग ने अलग-अलग दिन, अलग-अलग पोलिंग प्रतिशत के आंकड़े दिए और मतगणना के बाद आंकड़े फिर बदल गए।
माकन ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज रिकॉर्ड रखने की समय सीमा एक साल से कम करके 45 दिन कर दी गई। हरियाणा विधानसभा चुनाव की सीसीटीवी फुटेज के लिए हमने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में आवेदन किया। 10 दिसंबर को हाईकोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज देने का आदेश जारी किया। लेकिन, 20 दिसंबर को सीसीटीवी फुटेज रिलीज करने की बजाए केंद्र सरकार ने रूल ही चेंज कर दिया और सीसीटीवी फुटेज देने से मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि यदि कोई गलत कार्य नहीं हुआ तो क्यों सीसीटीवी फुटेज को छुपाया जा रहा है? हाईकोर्ट के आदेश को क्यों इस तरीके से दबाया जा रहा है? उन्होंने कर्नाटक की एक विधानसभा का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां 6,018 मतदाताओं के नाम काटने के आवेदन आए। सीआईडी ने जांच शुरू की तो पता चला कि इनमें से 5,994 आवेदन फर्जी हैं।
उन्होंने कहा कि जो नाम काटे जा रहे थे, वे दलित और अल्पसंख्यकों के थे। सीआईडी ने इस विषय को लेकर चुनाव आयोग से संपर्क किया। जिन कंप्यूटर से नाम काटने वाले आवेदन आए थे, उनके आईपी एड्रेस की जानकारी मांगी गई, लेकिन सीआईडी को यह जानकारी नहीं दी गई। बाद में पता चला कि एक नाम काटने के लिए 80 रुपए दिए जा रहे थे और चुनाव आयोग पुलिस की मदद करने की बजाए जांच को ब्लॉक कर रहा था। उन्होंने प्रश्न करते हुए पूछा, “क्या वोट चोरों को बचाना ही चुनाव आयोग का काम रह गया है?”


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