रांची, 17 दिसंबर । झारखंड में सरकारी नौकरियों की भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी, लेटलतीफी और भ्रष्टाचार के बेशुमार रिकॉर्ड हैं। यहां किसी नियुक्ति परीक्षा के लिए अभ्यर्थियों से एक-दो नहीं, चार-पांच दफा फॉर्म भरवाए जा सकते हैं। किसी परीक्षा की तारीखें छह-सात बार टाली जा सकती हैं। मुमकिन है कि कई बार तारीखें तय करने के बाद परीक्षा ले ली जाए तो नियुक्ति प्रक्रिया पूरी होते-होते सात-आठ-पंद्रह साल भी गुजर सकते हैं।
परीक्षा पास करने के बाद नियुक्ति के लिए अदालतों के चक्कर भी लगाने पड़ सकते हैं। ऐसे में रह-रहकर युवाओं और अभ्यर्थियों के सब्र का बांध छलक उठता है। वह सड़कों पर उतरते हैं तो उनके हिस्से कभी आश्वासन की घुट्टियां आती हैं तो कभी उनकी देह पर पुलिस की लाठियां बरसती हैं।
इन दिनों झारखंड के युवा एक बार फिर आंदोलित हैं। बीते शुक्रवार को राज्य के हजारों युवाओं ने झारखंड स्टाफ सेलेक्शन कमीशन का दफ्तर आठ घंटे तक घेरे रखा। परिसर में घुसकर हंगामा किया और इसी बीच एक युवक ने आत्मदाह की कोशिश की, जिसे पुलिस ने हिरासत में ले लिया।
ये युवा झारखंड सामान्य स्नातक योग्यताधारी संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा की तारीख छठी बार स्थगित किए जाने से नाराज थे। इस परीक्षा के लिए झारखंड सरकार में 2000 पदों पर नियुक्ति की जानी है और इसके लिए करीब साढ़े छह लाख युवाओं ने आवेदन किया है।
इस परीक्षा के लिए पहली बार आठ साल पहले विज्ञापन निकाला गया था। इसके बाद किसी न किसी गड़बड़ी या पॉलिसी में बदलाव के कारण इसके लिए कुल चार बार आवेदन मंगाए गए। अब परीक्षा के लिए नयी तारीखें 21 व 28 जनवरी घोषित की गयी हैं।
छात्रों की मानें, तो सातवीं बार तय इन तारीखों में भी परीक्षाएं मुमकिन नहीं लग रहीं, क्योंकि ये दूसरी भर्ती परीक्षाओं की तारीखों से टकरा रही हैं। झारखंड स्टाफ सेलेक्शन कमीशन की ओर से राज्य में नगर पालिका सेवा संवर्ग के 921 पदों पर नियुक्ति के लिए बीते 29 अक्टूबर को ली गई परीक्षा भी विवादों के घेरे में फंस गई। रांची, जमशेदपुर, धनबाद में कई केंद्रों पर ली गई इस परीक्षा में कई जगहों पर क्वेश्चन पेपर का सील टूटा होने, कुछ केंद्रों पर परीक्षार्थियों को ओएमआर शीट न मिलने, बुकलेट पर सीरियल नंबर प्रिंट न होने या मार्कर-पेन से लिखे होने जैसी शिकायतें मिली थीं। इसे लेकर कई केंद्रों पर छात्रों ने हंगामा किया था।
कमीशन ने पहले छात्रों की शिकायतों को खारिज कर दिया था और हंगामा करने वाले कई छात्रों पर एफआईआर दर्ज कराई थी। बाद में छात्रों की शिकायतें सही पाई गईं और कमीशन ने अब पांच केंद्रों की परीक्षाएं रद्द कर दीं। रद्द केंद्रों की परीक्षा के लिए अब 24 दिसंबर की तारीख तय की गई है।
झारखंड लोक सेवा आयोग यानी जेपीएससी की ओर से ली जाने परीक्षाओं की भी यही कहानी है। अप्रैल 2020 में जेपीएससी ने पूरे राज्य में सहायक टाउन प्लानर के 77 पदों के लिए विज्ञापन निकाला था। इसके लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों में से 318 को इंटरव्यू में बुलाया गया। इनमें से 186 ऐसे अभ्यर्थियों को भी इंटरव्यू में शामिल कर लिया गया, जिनके पास फॉर्म भरने की अंतिम तिथि 10 अगस्त 2020 तक इंस्टीट्यूट आफ टाउन प्लानर (इंडिया) का सर्टिफिकेट तक नहीं था, जबकि यह अनिवार्य अर्हता थी। ऐसे में कई अभ्यर्थी इस नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए हाईकोर्ट चले गए।
बीते दिनों हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि फॉर्म भरने की अंतिम तिथि तक इंस्टीट्यूट आफ टाउन प्लानर का सर्टिफिकेट नहीं होने के बावजूद जेपीएससी ने जिन 186 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में बुलाया था, उनकी उम्मीदवारी रद्द की जाए। हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने इसपर निर्णय सुनाते हुए हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा। जेपीएससी ने डिप्टी कलेक्टर के 50 पदों पर नियुक्ति के लिए हुई एक परीक्षा की प्रक्रिया पूरी करने में 18 साल लगा दिए। उसने उपसमाहर्ता (सीमित) परीक्षा का विज्ञापन वर्ष 2005 में जारी किया था। 23 अप्रैल 2006 को राजधानी के 16 केंद्रों पर परीक्षा आयोजित की गई थी। बाद में परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर विवाद हुआ और मामला कोर्ट भी गया।
इस बीच तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने इस परीक्षा की निगरानी जांच का आदेश दे दिया। निगरानी की जांच रिपोर्ट के आधार पर 12 जून 2013 को यह परीक्षा रद्द कर दी गई। बाद में राज्य सरकार ने यह परीक्षा नए सिरे से आयोजित करने का निर्णय लिया, जिसके आलोक में जेपीएससी ने 19 अक्टूबर 2015 को फिर से परीक्षा लेने की सूचना जारी की। इसके बाद तीन जनवरी 2020 को यह परीक्षा आयोजित हो पाई, जिसमें लगभग चार हजार शामिल हुए थे।
परीक्षा आयोजित होने के बाद इसके परिणाम जारी करने में जेपीएससी ने लगभग तीन साल लगा दिए। इसके बाद बीते जनवरी में यह नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हुई।
झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की ओर से ली जाने वाली ज्यादातर नियुक्ति परीक्षाएं भी विवादों में फंसती हैं। जेपीएससी 7वीं से लेकर 9वीं सिविल सर्विस परीक्षा संयुक्त रूप से एक साथ ली गई थी। इस परीक्षा के विज्ञापन के प्रकाशन के साथ विवाद शुरू हुए। फिर पीटी से लेकर मेन्स तक की परीक्षाओं के रिजल्ट तीन-तीन बार संशोधित किए गए। इस प्रक्रिया में अदालत को भी हस्तक्षेप करना पड़ा, तब कहीं जाकर 252 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जा सकी।
इस परीक्षा की प्रक्रिया पूरी करने में 252 दिन लगे। मौजूदा सरकार के पहले रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार पूरे पांच साल चली, लेकिन सरकारी नौकरियों में बहाली के मोर्चे पर उसका प्रदर्शन भी बेहद निराशाजनक रहा। सरकारी विभागों में लगभग साढ़े तीन लाख पद खाली रहे। उनके पांच वर्षों के मुख्यमंत्रित्व काल में जेपीएससी की एक भी सिविल सर्विस परीक्षा की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी।
झारखंड में नियुक्तियों की प्रक्रिया किस कछुआ चाल से चलती हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य बनने के बाद लगभग 23 वर्षों में जेपीएससी सिविल सर्विस की मात्र छह परीक्षाएं ले सका है, जबकि नियमानुसार अब तक सिविल सर्विस की कम से कम 20 परीक्षाएं पूरी कर ली जानी चाहिए थीं। इसके अलावा जेपीएससी की ओर से आयोजित विभिन्न स्तरों की एक दर्जन से ज्यादा नियुक्ति परीक्षाओं में गड़बड़ियों की सीबीआई जांच चल रही है।
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