मुंबई, 8 मार्च । अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर खाद्य उत्पाद बनाने वाली देश की शीर्ष एफएमसीजी कंपनियों में से एक अडाणी विल्मर लिमिटेड (एडब्ल्यूएल) ने एक नया सीएसआर शॉर्ट फिल्म लॉन्च किया है। इसमें लक्षित समूहों, अर्थात् बच्चे (0-5 वर्ष), किशोर और प्रजनन योग्य आयु की महिलाओं के बीच कुपोषण और एनीमिया को खत्म करने में ‘सुपोषण संगिनियों’ के अमूल्य योगदान को दिखाया गया है।
ये महिला स्वयंसेवक फॉर्च्यून सुपोषण परियोजना का एक अभिन्न अंग हैं, जो देश में कुपोषण और एनीमिया से निपटने के लिए अडाणी समूह की सीएसआर शाखा, अडाणी फाउंडेशन द्वारा कार्यान्वित अडाणी विल्मर की एक अग्रणी पहल है।
शुक्रवार को प्रसारित हो रही सीएसआर शॉर्ट फिल्म में एक संगिनी की एक परिवार से मिलने, उनके बेटे के स्वास्थ्य की सावधानीपूर्वक जांच करने और यह सुनिश्चित करने की कहानी बताई गई है कि उसे बढ़ने के लिए उचित पोषण मिले।
यह कहानी ग्रामीण भारत में संगिनियों की परिवर्तनकारी भूमिका पर प्रकाश डालती है, कुपोषित बच्चों के जीवन को ऊपर उठाने, साफ-सफाई की आदतों को बढ़ावा देने और परिवारों को पत्तेदार सब्जियां, बाजरा, फलियां और फलों जैसे पौष्टिक भोजन के महत्व के बारे में शिक्षित करने के उनके प्रयासों को दर्शाती है।
फिल्म निर्माता तियाश सेन द्वारा निर्देशित और डी.डी.बी. मुद्रा द्वारा परिकल्पित चार मिनट की सीएसआर शॉर्ट फिल्म को अधिकतम विजिबिलिटी के लिए मेटा और यूट्यूब जैसे प्लेटफार्मों पर भी उपलब्ध कराया जाएगा।
अडाणी विल्मर लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और सीईओ अंग्शु मलिक ने नई लॉन्च की गई सीएसआर लघु फिल्म पर टिप्पणी करते हुए कहा, “फॉर्च्यून सुपोषण परियोजना हमारे दिलों में एक विशेष स्थान रखती है और अपनी स्थापना के बाद से कुपोषण तथा एनीमिया उन्मूलन की दिशा में इसने जो प्रगति की है, उस पर हमें गर्व है। यह देखते हुए कि कुपोषण का भोजन और पोषण से करीबी संबंध है, इसके समाधान के लिए हमसे बेहतर कोई संगठन नहीं है। अडाणी विल्मर देश की सबसे बड़ी खाद्य कंपनी है।”
अडाणी विल्मर के विजन के बारे में बात करते हुए मलिक ने कहा: “इस उद्देश्य के लिए सक्रिय रूप से काम करना हमारी जिम्मेदारी है। हमारी सुपोषण संगिनियों ने जमीनी स्तर पर अथक प्रयास करके इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।”
उन्होंने कहा: “सीएसआर लघु फिल्म संगिनियों के असाधारण समर्पण और समाज के स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ाने के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। उनका जुनून और प्रयास पीढियों के कुपोषण के चिंताजनक चक्र को तोड़ने में सहायक रहा है। .अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उनके योगदान का सम्मान करते हुए हमें गर्व है।”
सन् 2016 में शुरू की गई फॉर्च्यून सुपोषण परियोजना को कमजोर समुदायों में अपने लक्षित समूहों के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति को बढ़ाने में शानदार सफलता मिली है।
परियोजना के अनूठे रुख में हितधारकों के साथ सक्रिय जुड़ाव शामिल है, जिसमें ग्राम पंचायतें, स्थानीय शासी निकाय, स्वास्थ्य सुविधाएं और अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ता शामिल हैं।
सुपोषण संगिनियों की प्रशिक्षण और तैनाती ने, जिन्हें परियोजना का हिस्सा बनने वाले गांवों से चुना गया है, जमीनी स्तर पर हस्तक्षेपों को लागू करने और आदतों में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
परियोजना को सफल बनाने में सुपोषण संगिनियों द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना करते हुए, अडाणी फाउंडेशन की अध्यक्ष डॉ. प्रीति अडाणी ने कहा, “मैंने लगातार कहा है कि संगिनियों ने फॉर्च्यून सुपोषण की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर फिल्म सही समय पर जारी हुई है और सराहनीय है।”
उन्होंने आगे कहा, “उनके काम को मान्यता मिलनी चाहिए, खासकर कुपोषण के पीढ़ी-दर पीढ़ी चक्र को तोड़ने में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धि रही है।”
फॉर्च्यून सुपोषण परियोजना ने वर्ष 2016 से देश भर में 31 साइटों पर अपने नेटवर्क का विस्तार किया है, जिसमें विदिशा (मध्य प्रदेश) और नर्मदा (गुजरात) जैसे कुछ आकांक्षी जिले शामिल हैं। यह 1,940 गांवों और मलिन बस्तियों में एक हजार से अधिक संगिनियों के माध्यम से 4,04,261 घरों तक पहुंच गया है।
संगिनियों के सक्रिय दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप लगभग 90 हजार बच्चों को कुपोषण से बचाया गया है। महिला स्वयंसेवकों के माध्यम से परियोजना के हस्तक्षेप से तीन लाख से अधिक किशोरियों और प्रजनन योग्य आयु की महिलाओं को भी लाभ हुआ है।
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