December 26, 2024
National

मध्य प्रदेश के लोकसभा चुनाव में परिवारवाद की छाया

Shadow of familyism in Lok Sabha elections of Madhya Pradesh

भोपाल, 2 अप्रैल । मध्य प्रदेश के लोकसभा चुनाव में परिवारवाद की छाया भी नजर आ रही है। यहां सियासी घरानों के प्रतिनिधि ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन स्थानों पर इन घरानों के प्रतिनिधि मैदान में हैं, वहां चुनाव रोचक भी है।

राज्य में लोकसभा चुनाव प्रचार की गर्माहट धीरे-धीरे बढ़ने लगी है और प्रचार अभियान भी गति पकड़ रहा है। राज्य में लोकसभा की 29 सीटें हैं और भाजपा सभी स्थानों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम तय कर चुकी है। जबकि, कांग्रेस को 28 स्थान पर चुनाव लड़ना है और वह अब तक सिर्फ 25 उम्मीदवारों के नाम का ही फैसला कर पाई है। अभी तीन संसदीय क्षेत्र ग्वालियर, मुरैना और खंडवा के लिए उम्मीदवार तय करना बाकी है।

राजनीति में परिवारवाद सियासी मुद्दा रहता है। मगर, टिकट वितरण में लगभग हर बार परिवारवाद की छाया साफ नजर आती है। इस मामले में कोई किसी से पीछे नहीं रहता।

राज्य की बात करें तो गुना संसदीय क्षेत्र से सिंधिया राजघराने के प्रतिनिधि के तौर पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। सिंधिया राजघराने के कई प्रतिनिधि सियासत में सक्रिय रहे हैं और सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बने हैं। इसी सीट पर कांग्रेस ने भी परिवारवाद को महत्व दिया है और राव यादवेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया है। उनके पिता भाजपा से कई बार विधायक रहे हैं।

बात राजगढ़ की करें तो यहां से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं। उनके बेटे जयवर्धन सिंह राघौगढ़ से विधायक हैं। इसी तरह छिंदवाड़ा से कांग्रेस ने एक बार फिर नकुलनाथ को उम्मीदवार बनाया है और उनके पिता कमलनाथ वर्तमान में विधायक हैं।

भाजपा ने रतलाम झाबुआ संसदीय क्षेत्र से अनीता सिंह चौहान को मैदान में उतारा है और उनके पति नागर सिंह चौहान वर्तमान में डॉ. मोहन यादव की सरकार में मंत्री हैं। समाजवादी पार्टी के खाते में सियासी समझौते के चलते खजुराहो सीट आई है। यहां से समाजवादी पार्टी ने मीरा यादव को उम्मीदवार बनाया है। वे भी परिवारवाद का हिस्सा हैं क्योंकि उनके पति दीप नारायण यादव उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की गरौठा विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे हैं। पार्टी ने पहले यहां से डॉ. मनोज यादव को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन, दो दिन बाद ही बदलाव कर मीरा यादव को उम्मीदवार बनाया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजनीतिक दल परिवारवाद को महत्व न देने की बात करते हैं, राजनीति के लिए सबसे नुकसानदायक बताने में भी नहीं चूकते। मगर, जब चुनाव आते हैं तो हर दल अपने-अपने तरह से परिवारवाद को परिभाषित करने लगता है। कोई घोषित उम्मीदवार की योग्यताएं बताने लगता है तो कोई चुनाव जीतने को महत्वपूर्ण बताता है। कुल मिलाकर राजनीतिक दल जो कहते हैं उस पर कायम नहीं रह पाते।

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