नई दिल्ली, 26 अगस्त । शोले के रहीम चाचा हो या लगान फिल्म के शंभू काका। इन किरदारों के बारे में बात करते ही एक बुजुर्ग शख्स की छवि सामने आती है। इस किरदार को निभाया था लेजेंडरी एक्टर अवतार किशन हंगल उर्फ ए.के हंगल ने। उनकी अदाकारी ऐसी कि दर्शक भी उससे आसानी से जुड़ जाते थे। शोले फिल्म के रहीम चाचा का ‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई…’ डायलॉग इसका एक बड़ा उदाहरण हैं।
ए.के हंगल ने 52 साल की उम्र में हिंदी सिनेमा में कदम रखा। अपने करियर के दौरान उन्होंने बड़े भाई, पिता या किसी बुजुर्ग की शख्स की भूमिका को ही निभाया। लेकिन, जब-जब वह बड़े पर्दे पर आए तो उन्होंने अपनी अदाकारी से लोगों का दिल जीत लिया।
ए.के. हंगल की बायोग्राफी ‘लाइफ एंड टाइम्स ऑफ ए.के. हंगल’ में उनके जीवन के अनसुने पहलुओं पर बात की गई है। किताब के अनुसार, ए.के. हंगल के पिता के करीबी दोस्त ने उन्हें दर्जी बनने का सुझाव दिया था। इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड के एक दर्जी से इसका काम भी सीखा था।
1 फरवरी, 1914 को सियालकोट में पैदा हुए अवतार किशन हंगल फिल्मों में आने से पहले एक स्वतंत्रता सेनानी थी। शुरुआती दिनों में वह एक दर्जी का काम करते थे, लेकिन 1929 से 1947 के बीच भारत की आजादी की लड़ाई में भी सक्रिय रहे। उन्हें कराची की जेल में तीन साल तक कैद रहना पड़ा। जब वह रिहा हुए तो भारत आ गए।
उन्होंने 1949 से 1965 तक भारत के सिनेमाघरों में कई नाटकों में अभिनय किया। जब उनकी उम्र 52 साल थी तो उन्होंने 1966 में बसु भट्टाचार्य की तीसरी कसम से फिल्म करियर की शुरुआत की।
ए.के. हंगल के लिए 1970 से 1990 के बीच का दौर काफी यादगार रहा। इस दौरान उन्होंने हीर रांझा, नमक हराम, शौकीन, शोले, आइना, अवतार, अर्जुन, आंधी, तपस्या, कोरा कागज और बावर्ची जैसी फिल्मों में अहम भूमिका निभाई। बताया जाता है कि उन्होंने राजेश खन्ना के साथ करीब 16 फिल्में की।
यही नहीं, हंगल ने मुंबई में आयोजित एक फैशन शो में व्हीलचेयर में रैंप वॉक किया था। उनकी अंतिम फिल्म पहेली थी, जबकि वह आखिरी बार टीवी शो ‘मधुबाला’ में भी नजर आए थे।
ए.के. हंगल ने अपने चार दशक के फिल्मी करियर में 225 फिल्मों में काम किया। उनकी उम्र भले ही बढ़ती गई, लेकिन फिल्मों में काम करने का जुनून बरकरार रहा। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने ए.के. हंगल को 2006 पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया था। उन्होंने 26 अगस्त 2012 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।