ग्रेटर नोएडा, बिल्डर और बायर की समस्याओं को लेकर रेरा का गठन किया गया था। उम्मीद की जा रही थी कि रेरा जल्द से जल्द इन मामलों को सुलझाएगा।
रेरा की तरफ से अभी तक मिले आंकड़ों के मुताबिक उसने लगभग 88 प्रतिशत मामलों को निपटा दिया है। रोजाना रेरा में 6000 मामलों की सुनवाई हो रही है। आईएएनएस की तरफ से पूछे गए सवालों के जवाब रेरा ने दिया है।
सवाल – अभी तक रेरा के गठन के बाद कितने मामलों का निस्तारण कर दिया गया है और अभी कितने मामले पेंडिंग है, इनके लिए क्या कार्ययोजना बनाई गई है ?
जवाब – अभी तक उप्र रेरा में लगभग 50,800 से ज्यादा शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं। जिनमें से लगभग 44,000 शिकायतों का निस्तारण किया जा चुका है और यह लगभग 88 प्रतिशत के समान है जो देश में सर्वाधिक है।
अकेले उप्र रेरा में देश की लगभग 39 प्रतिशत शिकायतें दर्ज है। उप्र रेरा ने अकेले देशभर की 40 प्रतिशत शिकायतों निस्तारण किया है। वर्तमान में लगभग 6 हजार शिकायतों की नियमित सुनवाई चल रही है।
शिकायतों के त्वरित निस्तारण के लिए उप्र रेरा ने ई-कोर्ट मॉडल अपनाया है। जिससे देश-विदेश में बैठे पक्षकार कोर्ट की वर्चुअल सुनवाई कम समय में उचित समाधान के साथ कर रहे हैं।
सवाल – रेरा पर कई बार सवाल उठाए जाते हैं कि रेरा आदेश तो कर देता है लेकिन बायर्स को फायदा नहीं पहुंचता। बिल्डर उसे तब भी परेशान करता रहता है। इन सब मुद्दों पर किस तरीके से रेरा काम कर रहा है ?
जवाब – उप्र रेरा में उपभोक्ताओं/शिकायतकर्तों/आवंटियों की शिकायतों के समाधान के लिए रेरा अधिनियम के प्राविधानों के अन्तर्गत सभी संभव उपाय किये जा रहे हैं, जो निम्नलिखित है :
धारा-31 के अन्तर्गत शिकायत की सुनवाई :- उप्र रेरा में शिकायतकर्ता सर्वप्रथम रेरा अधिनियम की धारा-31 के प्रावधानों के अंतर्गत हमारे पोर्टल- www.up-rera.in, पर आसानी से ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकता है।
हमने अपने यूट्यूब चैनल पर वीडियो भी अपलोड किए हैं। जिससे शिकायतकर्ता सहायता प्राप्त कर सकते हैं। शिकायत की सुनवाई के उपरान्त अधिकतम मामलों में आदेश जारी कर दिया जाता है और आदेश का अनुपालन भी होता है।
आदेश का अनुपालन न होने पर प्राधिकरण को सूचना – उप्र रेरा की पीठ से पारित आदेश का अनुपालन न होने पर शिकायतकर्ता पोर्टल पर ही ‘आदेश अनुपालन का अनुरोध’ दर्ज कर सकता है। जिससे प्राधिकरण विपक्षी को आदेश के अनुपालन की स्थिति से अवगत कराने को निर्देश देता है।
कई मामलों में इसी स्तर पर समाधान प्राप्त हो जाता है। यदि शिकायतकर्ता को प्राप्त आदेश का अनुपालन विपक्षी द्वारा नहीं किया जाता तो मामले की रेरा अधिनियम की धारा-38/40/63 के अन्तर्गत पुनः सुनवाई की जाती है और न्यायसम्मत आदेश जारी किये जाते हैं। इस दौरान भी कई मामलों में आदेश का अनुपालन सुनिश्चित कराया जाता है।
वर्तमान में पोर्टल के माध्यम से लगभग 15,000 से ज्यादा आदेश अनुपालन के अनुरोध प्राप्त हुए हैं, जिनमें से लगभग 10,950 आदेशों का पूर्णतः अनुपालन कराया जा चुका है और यह लगभग 79 प्रतिशत जितना है।
नियम-24 के अन्तर्गत सुनवाई :- इसके अतिरिक्त, यदि शिकायतकर्ता को कब्जा देने का आदेश है तो ऐसे मामलों में सुनवाई उप्र रेरा नियमावली के नियम-24 के अन्तर्गत प्राधिकरण के न्याय-निर्णायक अधिकारी द्वारा की जा रही है।
जिसमें कार्रवाई सीपीसी (सिविल प्रोसीजर कोड) में निहित प्राविधानों के तहत की जाती है, जिसमें न्याय निर्णायक अधिकारी कोर्ट रिसीवर की तरह प्रश्नगत इकाई को अटैच करके पंजीयन सहित शिकायतकर्ता/आवंटी को कब्जा दिलाने की प्रक्रिया करता है।
इन सभी विषयों पर जागरूकता के लिए उ.प्र. रेरा अपने सोशल मीडिया के मंचों से निरन्तर सूचना तथा सफल मामलों की जानकारी जारी करता है।
एक्स (पहले ट्विटर)- https://twitter.com/UPRERAofficial
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वसूली प्रमाण पत्र :- यदि आदेश निवेश की गई राशि की वापसी से जुड़ा है और आदेश का पालन नहीं किया जा रहा तो शिकायतकर्ता को न्याय दिलाने के लिए प्राधिकरण रेरा अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत वसूली प्रमाण पत्र जारी करता है। जिसकी वसूली जिला प्रशासन करता है।
उप्र रेरा जारी वसूली प्रमाण पत्रों के सापेक्ष लगभग 57 प्रतिशत मामलों में आवंटियों को धनराशि उनके बैंक खातों में जमा की गई है। यह वसूली प्रमाण पत्रों के रिफंड की मांग पूर्ण करने में देश में सर्वश्रेष्ठ है।
सवाल – बिल्डर बायर समस्याओं को सुलझाने के लिए रेरा किस रोडमैप पर काम कर रहा है और उसमें कितनी तेजी आ रही है ?
जवाब – उप्र रेरा रियल एस्टेट सेक्टर के हितधारकों के हितों की रक्षा करने तथा प्रोमोटर और आवंटियों के मध्य गतिरोध कम करने के लिए रेरा अधिनियम के उद्देश्यों के अनुरूप सभी संभव प्रयास कर रहा है।
अधूरी परियोजनाओं का पुनर्वास :- न्यायिक प्रक्रिया के अलग, उ.प्र. रेरा वर्षों से अधूरी परियोजनाओं के आवंटियों को उनकी इकाई (आवासीय तथा व्यवसायिक दोनों) दिलाने हेतु परियोजनाओं का शेष निर्माण और विकास कार्यों को पूर्ण कराने हेतु रेरा अधिनियम की धारा-8 के प्राविधानों का उपयोग कर रहा है।
इसमे अधूरी परियोजना के प्रमोटर एवं आवंटियों के संघ, 50 प्रतिशत से अधिक आवंटियों की सहमति सहित, से संयुक्त रूप से परियोजना का पुनर्वास कराया जाता है।
इस प्राविधान के तहत अब तक 3 अधूरी परियोजनाओं की लगभग 1,000 इकाई पूर्ण हो चुकी है, जिनमें गौतमबुद्ध नगर स्थित जेपी कैलिप्सो कोर्ट फेज-2 व जेपी नाइट कोर्ट तथा गाज़ियाबाद स्थित वसुंधरा ग्रांड शामिल है।
इन परियोजनाओं के प्रमोटर ने संबंधित विकास प्राधिकरण से परियोजना की ओसी प्राप्त करके या ओसी का आवेदन करके कब्जा देना शुरू कर दिया है।
इसके अलावा ऐसी 12 अन्य परियोजनाओं में लगभग 8,500 इकाइयों का ‘परियोजना पुनर्वास’ के माध्यम से शेष निर्माण व विकास कार्य पूर्ण कराया जा रहा हैं, जिनमें अंतरिक्ष संस्कृति फेज- 2 व 3, अजनारा लि-गार्डन फेज-3, ऐपेक्स स्प्लेन्डर, नोवेना ग्रीन, लॉ पैलेसिया, लॉ गैलेक्सिया, स्प्रिंग व्यू हाइटस, यूटोपिया एस्टेट, एप्पल 7, कासा ग्रांड-2, लॉ कासा अंसल एक्वापोलिस और सम्पदा लिविया शामिल हैं।
अधूरी परियोजनाओं का पुनर्निर्माण :- अधूरी परियोजनाओं के शेष निर्माण और विकास कार्य पूर्ण करने हेतु रेरा अधिनियम की धारा-15 के अन्तर्गत परियोजनाओं का अधिकतम अधिकार तथा दायित्व अन्य तीसरे पक्ष/सक्षम प्रमोटर को दिया जाता है।
जिसके पास दो तिहाई आवंटियों की सहमति होती है और उसके द्वारा परियोजना का निर्माण पूर्ण कराया जा रहा है।
इस प्रक्रिया द्वारा गौतम बुद्ध नगर की अधूरी परियोजना बिजलाइफ के अधिकतम अधिकार तथा दायित्व एचएसएल सॉफ्टवेयर को हस्तान्तरित की गई है जो आईथम 62 के नाम से परियोजना का पुनर्निर्माण कर रहा है।
इसी प्रकार ओह माई गॉड परियोजना साया सीमेंटेशन को दी गई है, जो साया स्टैटस के नाम से परियोजना का पुनर्निर्माण कर रहा है। इसके अलावा लखनऊ स्थित कियारा रेसीडेंसी का निर्माण इसी प्राविधान के अन्तर्गत पूर्ण किया गया है और गोमती गंज परियोजना का पुनर्निर्माण कराया जा रहा है।
अप्रोच पेपर :- अधूरी परियोजनाओं के निर्माण पूर्ण कराने हेतु हाल ही में उ.प्र. रेरा ने एक सलाहकार संस्थान द्वारा नोएडा व ग्रेटर नोएडा की 8 अधूरी परियोजनाओं का अध्ययन करवाया था, जिनमें से 6 परियोजनाओं के पूर्ण होने के सकारात्मक संकेत मिले थे।
इसके लिए सलाहकार संस्थान ने अधूरी परियोजनाओं के प्रोमोटर को को-प्रोमोटर लाने, उनकी बकाया राशि का समायोजन शेष भूखंड में करके बकाया कम करके परियोजना पुनर्जीवित करने, कुछ शुल्कों को माफ करके परियोजना को व्यवहारिक बनाने तथा आने कई विकल्पों का विवरण दिया था, जिससे परियोजना से जुड़े सभी हितधारकों के हितों की रक्षा की जा सके।
उप्र रेरा ने निर्माण पूर्ण हो चुकी परियोजनाओं में पंजीयन प्रारंभ कराने के लिए विकास प्राधिकरण की बकाया राशि को पंजीयन/रजिस्ट्री से अलग करने की सलाह भी दी थी जिससे आवंटियों को उनका मालिकाना हक मिल सके।
बकाया राशि की वसूली हेतु प्रोमोटर्स से उनकी भविष्य की परियोजना से समाधान तथा वसूली प्रमाण पत्र के विकल्प दिए थे। संबंधित रिपोर्ट उत्तर प्रदेश शासन के समक्ष प्रस्तुत की जा चुकी है।