हाल ही में बाऊपुर गाँव में रक्त कैंसर से एक 13 वर्षीय लड़के की मौत ने उसके परिवार को गरीबी और कर्ज में डुबो दिया है। इस साल बाढ़ के कारण परिवार के खेतों को हुए नुकसान ने संकट को और गहरा कर दिया है। 35 वर्षीय शरणजीत सिंह के पास तीन एकड़ ज़मीन है और वह 2022 तक वाहन मरम्मत का काम करते थे। परिवार गरीब था, लेकिन ज़िंदगी अच्छी चल रही थी। उस समय उनके 10 वर्षीय बेटे के कैंसर से हुए कर्ज ने उनकी ज़िंदगी बदल दी। इस साल कैंसर फिर से फैल गया और पिछले 5 अक्टूबर को 13 वर्षीय सुखमन सिंह की जान चली गई।
गांव के लिए यह एक सामूहिक त्रासदी है, जो उन्हें 2023 की बाढ़ के दौरान दो बच्चों की मौत की याद दिलाती है – गुरबीर सिंह गोरा (8) और गुरसिमर सिंह (11) – जो 2023 में ब्यास नदी में डूब गए थे।
सुखमन के पिता शरणजीत, जो निराश हैं, अपने 20 फुट के बोरवेल को भी ज़िम्मेदार ठहराते हैं—उनके अनुसार यही बीमारियों का कारण है। उन्हें बस साफ़ पानी और जमा हुए कर्ज़ों से मुक्ति चाहिए।
शरणजीत सिंह कहते हैं, “मैंने 2022 में सुखमन के पीजीआई चंडीगढ़ में चल रहे इलाज के लिए अपनी मरम्मत की नौकरी छोड़ दी। उसे हर तीन महीने में ले जाना पड़ता था। उसके ठीक होने के बाद भी, मैंने मैकेनिक की नौकरी फिर से शुरू करने की कोशिश की, लेकिन वह मुझे छोड़ने को तैयार नहीं था। 2022 के बाद सुखमन तो ठीक हो गया था, लेकिन इस साल उसका कैंसर फिर से उभर आया। पीजीआई वालों ने हमें उसे कहीं और ले जाने को कहा। इसलिए, हम उसे मुंबई (कैंसर के इलाज के लिए) ले गए। मैंने जहाँ से भी हो सका, पैसे उधार लिए। उसका इलाज ठीक से शुरू हुआ। लेकिन बाद में उसे निमोनिया हो गया। उसके बाद, वह कभी ठीक नहीं हुआ।”
उन्होंने आगे कहा, “मैंने अपने बेटे के इलाज पर 40 से 50 लाख रुपये खर्च कर दिए। मुझ पर 32 लाख रुपये का कर्ज़ है, लेकिन उसे चुकाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। जब बाढ़ आई, तब हम मुंबई में थे। मेरे खेतों को कुछ नुकसान हुआ है। मैं राहत का अपना हिस्सा भी नहीं ले पाया। मुझे बस इतना चाहिए कि मेरा कर्ज़ चुका दिया जाए और मेरे परिवार और माँ को साफ़ पानी पिलाने के लिए एक नया बोरवेल मिल जाए।”
शरणजीत का बोरवेल 20 फ़ीट गहरा है। “आर्थिक तंगी की वजह से हम ज़्यादा गहरा बोरवेल नहीं करवा पाए हैं। मेरी माँ को लिवर सिरोसिस है। ज़्यादातर गाँव वालों के बोरवेल 300 से 400 फ़ीट गहरे होते हैं। मेरा बोरवेल सिर्फ़ 20 फ़ीट गहरा है, क्योंकि इसकी क़ीमत बस कुछ हज़ार रुपये है। हमारे यहाँ पानी अच्छा नहीं आता, हर कुछ महीनों में पाइप काले पड़ जाते हैं।”
गाँव के सरपंच के भाई और समाजसेवी परमजीत सिंह कहते हैं, “सुखमन की मौत पूरे गाँव के लिए एक त्रासदी है। हम बचाव और राहत कार्यों में व्यस्त होने के कारण बच्चे के लिए शोक भी नहीं मना सके। गाँव के कई गरीब परिवारों के पास 20 फुट गहरे बोरवेल हैं। इसलिए ये सस्ते पड़ते हैं। इन्हें चलाने के लिए बस 1,000 रुपये की मोटर चाहिए। जिन घरों में गहरे बोरवेल हैं, वहाँ पानी साफ़ रहता है। लेकिन इन घरों में लगातार समस्याएँ रहती हैं। इनकी मोटरें खराब हो जाती हैं, पाइप काम नहीं करते। हम गाँव के लिए एक ओवरहेड टैंक बनवाने की योजना बना रहे हैं ताकि गरीब किसानों को भी साफ़ पानी मिल सके। अब हमारा ध्यान उन्हें साफ़ पानी पहुँचाने पर है।”

