लखनऊ, 19 जनवरी । प्रयागराज की कुंभ नगरी में महाकुंभ की शुरुआत के साथ देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालु भारत की संस्कृति की दिव्यता, आध्यात्मिकता और उसमें स्वयं की पहचान के संदेश को जानने, समझने और अनुभव करने के लिए आस्था की संगम नगरी में आ रहे हैं। कई विदेशी लोग भारत आकर यहां की संस्कृति से अभिभूत होकर यहीं के होकर रह जाते हैं तो विदेश में बस चुके कई भारतवासी भी अपनी जड़ों की ओर वापस लौट जाते हैं। ऐसे ही एक संत हैं आचार्य जयशंकर जो अध्यात्म की राह पर चलने से पहले यूएस में बढ़िया नौकरी कर रहे थे लेकिन भौतिक जीवन में उन्हें कुछ अधूरा लगा जिसके बाद उन्होंने भारतीय जीवन-दर्शन को अपनाया। आईएएनएस ने आचार्य जयशंकर से खास बातचीत की है।
आचार्य जयशंकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से बीटेक की पढ़ाई करने के बाद यूएस में जाकर बस गए। वहां उन्हें अच्छी नौकरी के साथ तमाम भौतिक सुख-सुविधाएं मिलीं। लेकिन वहां से संतोष नहीं मिलने के बाद उन्होंने वापस भारत लौटने का फैसला किया और संत जैसा जीवन जीना शुरू किया। इन्होंने बताया कि इसके बाद उन्हें धर्म का रास्ता दिखा, जिसे इन्होंने अपनाया।
आर्ष विद्या संप्रदाय से आने वाले आचार्य जयशंकर के गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती हैं जिनका आश्रम ऋषिकेश में है। जयशंकर ने आईएएनएस को बताया, “मैं यूएस में काम कर रहा था लेकिन गुरु से मुलाकात के बाद मेरा नजरिया वेदांत की ओर चला गया। मेरे मन में कुछ सवाल थे। तब मैं सोचता था कि हम सब क्या चाहते हैं। ये सवाल पूछा जाए तो सबका जवाब होगा कि हम आनंद, सुख और तृप्ति की चाह रखते हैं। लेकिन हम क्षण और हर जगह आनंद से रहना चाहते हैं। सब जगह आनंद ढूंढ रहे हैं। लेकिन उसे हम इस भौतिक जगत में ढूंढ रहे हैं। अनित्य जगत है, जिसमें नित्य आनंद की कोई संभावना नहीं है। मुझे पूर्ण तृप्ति की खोज थी। तमाम भौतिक प्राप्तियों के बावजूद मैंने देखा लोग दुखी हैं।”
उन्होंने कहा कि जब वह अमेरिका गए तो उन्होंने देखा कहीं भी कोई खुश नहीं था। भारत में लोग मुश्किल जीवन जी रहे थे तब खुश नहीं थे और यूएस में सब कुछ आरामदायक था, तब भी वे खुश नहीं थे। लेकिन हमारी संस्कृति में ही मोक्ष की अवधारणा है। वह भारत में ही आप प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने की जरूरत नहीं है। इसलिए मैंने यूएस के बाद भारत वापस आकर वेदांत की शिक्षा ली और अब मैं लोगों को भी सिखा रहा हूं। अपने गुरु से भारत में पाठन और मनन किया और उसके बाद उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं। भौतिक जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। जो भी आपको मिलेगा एक दिन वह चला जाएगा।
आचार्य जयशंकर कहते हैं कि जिंदगी में जो भी आपको खुशी मिलती है उसमें थोड़ा दुख भी मिला हुआ है। दुख से मिश्रित सुख ही मिल सकता है। उसके बाद वह वस्तु चली जाएगी। इसलिए दुख रहेगा क्योंकि जो मिला है उसे जाने से आप नहीं रोक सकते हैं। समयकाल में संयोग-वियोग होते ही रहेंगे। ऐसे में सोचना पड़ता है कि जीवन में कुछ नित्य क्या है? देश-काल से अतीत जो है वही नित्य हो सकता है। शास्त्र हमारे सत्य स्वरूप को दिखाते हैं। यही वेदांत का विषय है। शास्त्र आपको बताते हैं कि आप अनंत हैं, आप ही सत्य ज्ञान स्वरूप हैं। यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद आपको आनंद मिल सकता है।
आचार्य जयशंकर ने समाज के नाम संदेश देते हुए कहा, “मैं लोगों को ही बोलना चाहता हूं कि आप जो भी कर रहे हैं, वह धर्म के अनुसार करना चाहिए। इसलिए हमारे शास्त्र में धर्म को पहला पुरुषार्थ बताया गया है। तो जो भी आप करना चाहते हैं उसे धर्म के मार्ग पर जाकर ही करना है। जहां धर्म नहीं है वहां मोक्ष भी नहीं है।”
इसके अलावा उन्होंने अभय सिंह के बयान पर कहा कि हमें ये नहीं देखना चाहिए कि वह नशा करते थे या नहीं। हमें देखना चाहिए कि व्यक्ति किन-किन परिस्थितियों से होकर धर्म की ओर वापसी करता है। अब वह क्या कर रहा है, ये सब हमें देखना चाहिए। अभी वह एक संत हैं, तो संत हैं। नदी भी बहुत जगह से आती है लेकिन वह पवित्र हो जाती है। इसी तरीके से हमारी ऋषियों की भी कहानियां सुनेंगे तो उनका जन्म कैसा हुआ, या उन्होंने संत बनने से पहले क्या किया, वह अहम नहीं है। आपको वाल्मीकि की कथा भी मालूम होगी। भूतकाल में जो हुआ उसे उधर ही छोड़कर वर्तमान में कोई क्या कर रहा है, वह अहम है।
आचार्य जयशंकर ने कुंभ में सरकार की व्यवस्था पर संतोष जताया। उन्होंने कहा कि यात्रियों के लिए सभी सुविधाएं दी गई हैं। यह एक लाइफ इवेंट जैसा है जिसमें सबको आना चाहिए। यह अपने अंतःकरण को शुद्धिकरण करने के लिए एक बहुत बड़ा मौका है। संत लोगों के साथ रहना, उनका सत्संग करना, स्नान करना, जप करना और जो भी आप करना चाहते हैं। लेकिन इसे पिकनिक और टूरिज्म की तरह नहीं लेना चाहिए। यह आपके आध्यात्मिक उत्थान के लिए है।