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अखिलेश के सामने गठबंधन के साथियों को सहेजने की चुनौती

Lucknow: Samajwadi Party President Akhilesh Yadav addresses a press conference at the party office in Lucknow on Sunday, March 26, 2023. (Photo: Phool Chandra/IANS)

लखनऊ, लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के लिए गठबंधन के साथियों को बचाने की बड़ी चुनौती है। पुराने साथी हाथ छुड़ाने और भाजपा को ताकत देने में जुटे हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में जो गठबंधन मिलकर लड़े थे, वह भाजपा के खेमे में चले गए हैं।

यहां तक कि समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह भी भाजपा में चले गए। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले पिछड़ा, दलित और मुस्लिम का गठजोड़ बनाने के लिए सपा मुखिया ने हर कोशिश की, जिसमें महान दल, सुभासपा और रालोद के अलावा भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा के साथ आए थे। सुभासपा के सिंबल पर छह और रालोद के सिंबल पर आठ सीटों पर सफलता भी मिली थी हालांकि गठबंधन के तहत इन दोनों पार्टियों को क्रमशः 18 और 33 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था। वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद मई में राज्यसभा के चुनाव हुए। जिसमें सहयोगी राजभर ने एक सीट मांगी थी जिसमें सपा ने न तो सीट दी न ही उनसे बात की। तभी से मामला खराब हो गया और वो छिटक कर चले गए।

इसके बाद विधान परिषद में हालात और खराब हो गए। ऐसे ही केशव देव मौर्य और अब दारा सिंह साथ छोड़कर चले गए हैं।

सूत्र बताते हैं कि सपा के कुछ और लोग भी पाला बदलने की तैयारी में हैं। सपा के गठबंधन में अभी फिलहाल रालोद व अपना दल कमेरावादी ही बचे हुए हैं। यह लोग बेंगलूर की बैठक में भी गए हैं। इस बैठक में बसपा से आए राम अचल राजभर और लाल जी वर्मा भी गए हैं।

बताया जा रहा है कि अखिलेश एक संदेश देना चाहते हैं। अभी भी उनकी पार्टी में पिछड़े को उतनी ही तवज्जो है।

राजनीतिक जानकार प्रसून पांडेय कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा को भले जीत ना मिली हो लेकिन उनकी सीटे बढ़ी हैं। गैर यादव बिरदारी को भी जोड़ने में सफलता मिली। लेकिन वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथियों को सहेज नहीं पा रही है। गठबंधन की गांठ ढीली पड़ने लगी है।

ओपी राजभर पहले ही साथ छोड़ गए। रालोद को लेकर अभी संशय है। उनके अपने विधायक दारा सिंह भाजपा में चले गए हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है। इनके गैर यादव बिरादरी जोड़ने के अभियान में दारा सिंह और ओपी राजभर ने ब्रेक लगा दिया है। जयंत चौधरी भले ही बेंगलूर बैठक में चले गए हों। लेकिन अभी वह भी मोलभाव करेंगे। इसी कारण अखिलेश अपने पुराने फॉर्मूले यादव और मुस्लिम की ओर भी बढ़ रहे हैं। इसकी बानगी आम दावत में दिख चुकी है। कांग्रेस भी राष्ट्रीय चुनाव में अपने को मजबूत दिखाने का प्रयास करेगी। यह चुनाव अखिलेश मुलायम के बगैर लड़ रहे हैं। उनके सामने गठबंधन के साथियों के साथ समीकरण ठीक करने की चुनौती है।

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