पश्चिम बंगाल के मंत्री और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम के एक बयान को चिंताजनक बताते हुए भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने उन पर हमला बोला है और पश्चिम बंगाल के हिंसाग्रस्त मुर्शिदाबाद के विस्थापितों की तुलना कश्मीरी पंडितों से की है, जो अपने ही राज्य और देश में शरणार्थी बन गए थे।
अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर हकीम का एक वीडियो शेयर किया है। उन्होंने इसके साथ पोस्ट में लिखा, “यह चिंताजनक है कि वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और ममता बनर्जी के भरोसेमंद फिरहाद हकीम मुर्शिदाबाद से हिंदुओं के विस्थापन को न केवल उचित ठहरा रहे हैं, बल्कि उस पर संतोष भी व्यक्त कर रहे हैं। बंगाली हिंदू कश्मीरी पंडितों की तरह अपनी ही मातृभूमि में शरणार्थी बनकर रह गए हैं, जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए कश्मीर से भागकर जम्मू और शेष भारत में शरण लेनी पड़ी थी।”
इस वीडियो में हकीम विस्थापन के बारे में मीडिया के प्रश्न पर कह रहे हैं, “सब ठीक है, ऐसी कोई बात नहीं है। यहां ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है। बंगाल से बंगाल में ही जा रहे हैं। बंगाल सुरक्षित है, इसलिए बंगाल में जा रहे हैं।”
उल्लेखनीय है कि संसद से वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित होने के बाद मुर्शिदाबाद में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए, जो बाद में हिंसक हो गए। बड़ी संख्या में हिंदू वहां से पलायन कर रहे हैं।
अमित मालवीय ने अपने पोस्ट में लिखा कि यह विडंबना है कि फिरहाद हकीम जैसे व्यक्ति, “जो सांप्रदायिक और भड़काऊ बयानबाजी के इतिहास वाले व्यक्ति हैं”, अब कोलकाता के मेयर के प्रतिष्ठित पद पर हैं, जिस पर कभी देशबंधु चित्तरंजन दास (1924 में इस पद पर आसीन होने वाले पहले भारतीय), सुभाष चंद्र बोस और अन्य दिग्गज लोग काबिज रहे हैं। उन्होंने इसे कोलकाता के “परिष्कृत भद्रलोक संवेदनाओं” के क्षरण का प्रतीक बताया।
भाजपा नेता ने कहा कि फिरहाद हकीम वही व्यक्ति हैं, जिसने कोलकाता के एक हिस्से को “मिनी पाकिस्तान” कहा था और पहले भी इस्लाम में धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाले भड़काऊ बयान दिए हैं। हकीम ने दावत-ए-इस्लाम जैसी पहल का खुलकर समर्थन किया है और गैर-मुसलमानों को ‘दुर्भाग्यशाली’ करार दिया है। साथ ही एक ऐसे भारत की कल्पना की है, जो पूरी तरह इस्लामी कानून द्वारा शासित हो।
अमित मालवीय ने हकीम के बयान पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चुप्पी पर भी सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि यदि तृणमूल सुप्रीमो अपनी चुप्पी जारी रखती हैं, तो वह एक ऐसे व्यक्ति को सशक्त बनाने का जोखिम उठाती हैं, जिसकी वैचारिक महत्वाकांक्षाएं अंततः उनके नेतृत्व को चुनौती दे सकती हैं और बंगाल को इस्लामीकरण की ओर धकेल सकती हैं।
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