November 24, 2024
Punjab

1947 के विभाजन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले लाखों पंजाबियों की याद में अकाल तख्त साहिब पर अरदास

1947 में देश के विभाजन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले लाखों पंजाबियों की याद में आज शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा श्री अकाल तख्त साहिब पर अरदास (सिख प्रार्थना) का आयोजन किया गया।

भाई प्रेम सिंह द्वारा अरदास की गई तथा श्री अकाल तख्त साहिब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी मलकीत सिंह द्वारा पवित्र हुक्मनामा पढ़ा गया।

इस अवसर पर श्री हरमंदर साहिब के हेड ग्रंथी एवं अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह, एसजीपीसी अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा कि 1947 के बंटवारे के दौरान पंजाबियों को बहुत कष्ट सहना पड़ा, खासकर सिखों को सबसे ज्यादा कष्ट सहना पड़ा। इस बंटवारे के दौरान जो लकीर खींची गई, वह पंजाब के सीने पर खींची गई।

उन्होंने कहा कि सिखों के विरासत वाले देश पंजाब को दो भागों में बांट दिया गया, जिसके कारण सिखों के प्राणों से प्रिय गुरुद्वारा साहिब अलग हो गए।

पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) में जिन सिखों के पास बड़ी जमीनें और व्यवसाय थे, उन्हें अपनी संपत्तियां छोड़नी पड़ीं और विभाजन से संबंधित इन दंगों के दौरान लाखों पंजाबियों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

उन्होंने कहा कि भारत के नेता सिखों के साथ किए गए वादों को भूल गए और उल्टा सिखों को ही पेशे से अपराधी बता दिया। उन्होंने कहा कि यह दुख की बात है कि 77 साल बाद भी दोनों देशों की सरकारों ने उस समय मारे गए लोगों के लिए अफसोस के दो शब्द भी नहीं कहे। ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा कि सिखों के साथ अन्याय आज भी जारी है।

कई सिख अपनी सजा पूरी करने के बाद भी तीन दशकों से जेलों में बंद हैं और सरकार उन्हें रिहा नहीं कर रही है।

उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री से सवाल किया कि उन्हें बताना चाहिए कि किस कानून और अधिकार के तहत सिख कैदियों को सजा पूरी होने के बाद भी जेल में रखा जाता है। उन्होंने यह भी पूछा कि देश में सिखों के लिए अलग कानून क्यों है। उन्होंने सिख समुदाय से गुटबाजी और आपसी फूट को त्याग कर अन्याय के खिलाफ संघर्ष में एकजुट होने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर सिखों को बांटने की साजिश, सिख मर्यादा और परंपराओं पर हो रहे हमलों से निपटने और उन्हें रोकने के लिए सिखों को सिख जीवन पद्धति अपनाकर और गुरबाणी से जुड़कर गुरमत (सिख गुरुओं की शिक्षाओं) में परिपक्व होना चाहिए।

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