नई दिल्ली, 30 अगस्त । ‘पाप क्या, पुण्य क्या? ’ इस भेद को जानने की कोशिश करते शिष्य विशालदेव-श्वेतांक और उनके सवालों का उत्तर देते महाप्रभु रत्नाम्बर… उपन्यास पहली पंक्ति ही पाठक को मोहपाश में बांध देती है। फिर कई पात्र आते हैं जो अंत तक पाप-पुण्य की खोज करते रहते हैं और इसी तलाश का सार है ‘चित्रलेखा’। कालजयी कृति जिसकी रचना की हिंदी जगत के नामी साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा ने।
हिंदी साहित्य के चमकते सितारे थे भगवतीचरण वर्मा। ‘अपने खिलौने’, ‘पतन’, ‘तीन वर्ष’, ‘रेखा’ और ‘चित्रलेखा’ जैसी रचनाओं के जरिए युगीन विसंगतियों पर तगड़ा प्रहार किया और समकालीन साहित्यकारों को कलम की ताकत का एहसास कराया।
भगवतीचरण के लिखे मशहूर उपन्यास ‘चित्रलेखा’ ने उन्हें सफलता की नई बुलंदियों तक पहुंचाया। भला कोई सोच सकता था कि पाप और पुण्य को आधार बना कर पूरा उपन्यास गढ़ लिया जाएगा। ‘चित्रलेखा’ ने वो सब किया। समाज को कुरेदा, अपने भीतर झांकने को मजबूर किया और महिला सशक्तिकरण की सही मायने में परिभाषा गढ़ी। चित्रलेखा ही नहीं उनकी तमाम कृतियां समाज को उसका चेहरा दिखाती थीं। मानव समाज में रिश्तों की गहरी समझ और कहानियों व कविताओं को शब्दों में पिरोने की कला ने उन्हें अपने समय के मशहूर साहित्यकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा किया।
30 अगस्त 1903 को जन्मे हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा का बचपन से ही कविता की ओर झुकाव था। कविताओं से प्रेम की वजह से ही उन्होंने रचनाएं लिखना शुरू की। कविता लिखने का शौक बढ़ा तो अपने स्कूल की पत्रिका के नियमित लेखक बन गए। ‘प्रताप’ और ‘शारदा’ जैसी पत्रिकाओं में भी उनके लेख छपने लगे।
1928 में भगवतीचरण वर्मा ने एलएलबी की और इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने की ठानी। लेकिन, उनकी वकालत चल न सकी। इसी समय वह ‘चित्रलेखा’ को लिखने में जुट गए। ‘पाप और पुण्य’ जैसे सवालों को तलाशती मशहूर ‘चित्रलेखा’ (1934) आते ही छा गई। ‘चित्रलेखा’ ने उनके भाग्य को बदल दिया। उस जमाने में ‘चित्रलेखा’ की ढाई लाख से अधिक प्रतियां बिक गईं। बाद में उनके इस उपन्यास पर दो फिल्में भी बनीं, जिन्हें उनके उपन्यास की तरह दर्शकों का भरपूर प्यार मिला।
भगवतीचरण वर्मा की कविता “तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनी, तुम छवि की परिणीता-सी, अपनी बेसुध मादकता में, भूली-सी, भयभीता सी”, में प्रेम का वो स्वभाव साफतौर पर दिखाई पड़ जाता है। यही नहीं, वह एक अन्य कविता “यह ममता का वरदान सुमुखि, है अब केवल अपवाद मुझे, मैं तो अपने को भूल रहा, तुम कर लेती हो याद मुझे” में ममता के भाव को बहुत खूबसूरती के साथ बयां करते हैं।
आले दर्जे के रचनाकार थे भगवतीचरण वर्मा। जिन्होंने हिंदी साहित्य को ‘अपने खिलौने’, ‘पतन’, ‘तीन वर्ष’, ‘चित्रलेखा’, ‘भूले-बिसरे चित्र’, ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘सीधी सच्ची बातें’, ‘सामर्थ्य और सीमा’ जैसे उपन्यासों से ही नहीं नवाजा बल्कि वसीयत, रुपया तुम्हें खा गया, सबसे बड़ा आदमी जैसे नाटक भी लिखे। उनकी रचनाएं उच्छृंखल नहीं बल्कि गंभीरता और संवेदनशीलता से भरपूर होती थीं। साथ ही उन्होंने सामाजिक समस्याओं पर भी रोशनी डाली।
भगवतीचरण वर्मा को भूले बिसरे चित्र के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया, जबकि वह राज्यसभा सदस्य के रूप में भी मनोनीत किए गए। राज्यसभा की सदस्यता के दौरान ही 5 अक्टूबर 1981 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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