December 22, 2025
National

जयंती विशेष : ‘हम घिरे हैं गिरे नहीं’ बताने वाले समकालीन शब्दकार

Birth Anniversary Special: Contemporary wordsmith who said, ‘We are surrounded, not fallen’

हिंदी साहित्य के समकालीन कवियों में पंकज सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनकी कविताएं संघर्ष, विद्रोह और मानवीय संवेदनाओं से भरी हुई हैं। ‘हम घिरे हैं गिरे नहीं’ जैसी पंक्तियां उनके साहसी और बेबाक स्वभाव को दर्शाती हैं। उनकी 22 दिसंबर को जयंती है। पंकज सिंह ने न केवल कविता के माध्यम से समाज को आईना दिखाया, बल्कि पत्रकारिता और सामाजिक सक्रियता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनका जन्म 22 दिसंबर 1948 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक छोटे से गांव चैता में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा मुजफ्फरपुर से पूरी करने के बाद उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए. किया। इसके बाद वह दिल्ली आए और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोध कार्य के लिए दाखिला लिया। जेएनयू का माहौल उनके साहित्यिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण रहा। यहां वे लिटरेरी सोसायटी के अध्यक्ष बने।

उस दौर में विद्रोह और नई चेतना का माहौल था, जिसमें पंकज सिंह अपने साथियों के साथ आगे रहे। सत्तर का दशक उनके जीवन और रचना का महत्वपूर्ण समय था। इस दौर में आपातकाल जैसी घटनाएं हुईं। आपातकाल के दौरान पुलिस उन्हें ढूंढती रही, लेकिन वे एक जगह से दूसरी जगह जाते रहे। उनकी कविता ‘सम्राज्ञी आ रही है’ साल 1974 में आई, जो आपातकाल से पहले की राजनीतिक स्थिति को दिखाती है।

पंकज सिंह 1970-80 के दशक की हिंदी कविता के प्रमुख प्रतिनिधि रहे। उनकी रचनाएं मध्यवर्ग की संघर्षपूर्ण चेतना और संवेदना के दायरे में सत्ता के दमन, शोषित-दमित लोगों की पीड़ा, स्त्री की व्यथा और आम जनता के संघर्ष की जय-पराजय की कहानी कहती है। इन कविताओं में समाज के कठोर यथार्थ का गहरा चित्रण है और सामाजिक विसंगतियों पर तीखा प्रहार भी है।

पंकज सिंह की भाषा साफ, सुस्पष्ट और तत्सम शब्दों से भरपूर थी। वह लाग-लपेट से दूर रहते थे और सीधे-सीधे अपनी बात कहते थे। उनके व्यक्तित्व में साहस और आक्रामकता थी, जिसे कुछ लोग उदंडता भी मानते थे, लेकिन उनकी बेबाकी की प्रशंसा सभी करते थे। पंकज सिंह का पहला कविता संग्रह ‘आहटें आसपास’ 1981 में प्रकाशित हुआ, जिसमें उनकी पहली कविता ‘शरद के बादल’ शामिल है। इसके बाद ‘जैसे पवन पानी’ और अन्य संग्रह आए।

उन्हें हिंदी साहित्य में योगदान के लिए मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, शमशेर सम्मान और नई धारा सम्मान जैसे पुरस्कार मिले। वह वामपंथी विचारधारा से जुड़े रहे और शोषित वर्गों की आवाज बने। पंकज सिंह का निधन 26 दिसंबर 2015 को दिल्ली में हुआ था। वह भले ही दुनिया को अलविदा कह चुके हैं, लेकिन उनकी कविताएं आज भी प्रासंगिक हैं, जो संघर्ष और उम्मीद की बात करती हैं।

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