N1Live National बर्थडे स्पेशल : कोलकाता की गलियों से बॉलीवुड और राजनीति तक, आवाज से बनाई पहचान
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बर्थडे स्पेशल : कोलकाता की गलियों से बॉलीवुड और राजनीति तक, आवाज से बनाई पहचान

Birthday Special: From the streets of Kolkata to Bollywood and politics, his voice made him famous

हिमालय की सुंदर पहाड़ियों और बंगाल की खाड़ी के बीच पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 15 दिसंबर 1978 को जन्मे बाबुल सुप्रियो बचपन से ही संगीत के साथ बड़े हुए हैं। उनके परिवार में संगीत की गहरी जड़ें थीं। पिता और मां संगीत प्रेमी थे और दादा बंगाली संगीत के जाने-माने संगीतकार थे। यही कारण था कि बाबुल ने चार साल की उम्र से ही संगीत को अपना दोस्त बना लिया। किशोर कुमार और दादा की प्रेरणा ने उन्हें संगीत के रास्ते पर बढ़ाया।

बाबुल ने अपनी प्रतिभा को लोगों तक पहुंचाने के लिए पहला कदम ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के मंचों पर रखा। उन्हें गायकी के लिए 1983 में ‘ऑल इंडिया डॉन बॉस्को म्यूजिक चैंपियन’ और 1985 में ‘सबसे प्रतिभाशाली प्रतिभा’ पुरस्कार भी मिले। कॉलेज के दौरान, बॉलीवुड की आवाजों ने उनका ध्यान खींचा। खासकर कुमार सानू की आवाज ने उन्हें अपनी ओर खींचा। हालांकि उनके पिता चाहते थे कि वह किसी स्थिर नौकरी में रहे, इसलिए पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने बैंक में नौकरी भी की। लेकिन, संगीत का जुनून कभी शांत नहीं हुआ।

एक दिन बाबुल ने सब कुछ छोड़कर मुंबई की राह पकड़ी। हावड़ा रेलवे स्टेशन से यात्रा शुरू हुई और 22 घंटे बाद दादर स्टेशन पर पहला कदम रखा। मुंबई की सड़कों, स्टूडियो और संगीत डायरेक्टर्स के ऑफिस उनके लिए नई दुनिया के दरवाजे थे। अंधेरी वेस्ट में उन्होंने ठिकाना बनाया और अपने सपनों की तलाश शुरू की। शुरुआती संघर्षों के बाद, एक फोन कॉल ने उनकी जिंदगी बदल दी। संगीत निर्देशक कल्याणजी ने उन्हें वर्ल्ड टूर का मौका दिया। मार्च 1993 में उनके पासपोर्ट पर पहली बार ठप्पा लगा और उनके सपनों का सफर शुरू हुआ।

इसके बाद बॉलीवुड ने उन्हें अपनाना शुरू किया। बप्पी लहरी, अनु मलिक, साजिद-वाजिद और ए.आर. रहमान जैसे दिग्गजों के साथ काम करने का मौका मिला। फिल्में और हिट गाने उनके करियर की सीढ़ियां बन गए। ‘मुमकिन ही नहीं तुमसे प्यार हो जाए,’ ‘दिल ने दिल को पुकारा,’ और ‘हटा सावन की घटा’ जैसे गाने उनकी आवाज की ताकत साबित कर गए।

सिर्फ संगीत ही नहीं, बाबुल सुप्रियो ने राजनीति की दुनिया में भी कदम रखा। बाबा रामदेव के कहने पर उन्होंने बंगाल के आसनसोल सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद केंद्रीय मंत्री की कुर्सी तक का सफर उनके लिए खुल गया।

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