28 जुलाई को प्रख्यात सिख नेता, समाजसेवी और पूर्व सांसद सरदार तरलोचन सिंह का जन्मदिन है, एक ऐसा नाम जिसने अपने जीवन को सिख धर्म, पंजाबी भाषा और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से उठकर भारतीय लोकतंत्र की ऊंचाइयों तक पहुंचने वाले सरदार तरलोचन सिंह आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं।
एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे सरदार तरलोचन सिंह उन गिने-चुने लोगों में से एक हैं, जो 19वीं सदी की दो बड़ी त्रासदियों (1947 में विभाजन और 1984 के नरसंहार) के प्रत्यक्षदर्शी बने।
28 जुलाई 1933 को तरलोचन सिंह का जन्म पंजाब के धुधियाल (अब पाकिस्तान के चकवाल) में हुआ था। 1947 में विभाजन के समय उनका परिवार पटियाला चला आया। विभाजन के बाद का समय उनके और उनके परिवार के लिए बहुत कठिन था। कुछ समय के लिए उन्हें अपनी पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करना पड़ा। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की।
यहां से तरलोचन सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1957 में फिरोजपुर, पंजाब में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में उन्होंने सिविल सेवा में अपना करियर शुरू किया। यहां से धीरे-धीरे उन्होंने ऊंचाइयों को भी छूना शुरू कर दिया।
वे पंजाब सरकार के पर्यटन, संस्कृति, संग्रहालय और पुरातत्व विभाग के अतिरिक्त निदेशक रहे। उन्होंने 9वें एशियाई खेल आयोजन समिति, नई दिल्ली में प्रचार एवं जनसंपर्क निदेशक के रूप में कार्य किया। इसके बाद वे भारत के राष्ट्रपति के प्रेस सचिव रहे। यहां से आगे उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
भारत के प्रख्यात सिख नेता, समाजसेवी और पूर्व सांसद सरदार तरलोचन सिंह का पूरा जीवन सिख सिद्धांतों की रक्षा और प्रचार में समर्पित रहा है। इसके आगे तरलोचन सिंह ने अपना जीवन सिख सिद्धांतों की रक्षा और प्रचार में समर्पित कर दिया। उन्होंने सिख इतिहास, विरासत और संस्कृति के संरक्षण के लिए संग्रहालयों की स्थापना की। वे लंदन से दुर्लभ सिख धरोहरों को भारत लाए और सिख धर्म की स्वतंत्र पहचान के लिए संसद में विधेयक भी प्रस्तुत किया।
वे संसद में पंजाबी में बोलने वाले पहले सांसद हैं, जिनका अंग्रेजी और हिंदी में एक साथ अनुवाद किया गया। इसके अलावा, पंजाबी भाषा को हरियाणा और दिल्ली में दूसरी राजभाषा का दर्जा दिलाने से लेकर विदेशों में फंसे सिखों की सहायता करने और अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास तक, उनका योगदान अतुलनीय रहा है।
तरलोचन सिंह को सिख धर्म और जीवन के अन्य क्षेत्रों में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए 2014 में सिख लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनका नाम न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व पटल पर सिख धर्म और पंजाबी भाषा के प्रचार-प्रसार में अग्रणी योगदान के लिए सम्मान के साथ लिया जाता है।