नई दिल्ली, 11 सितंबर । साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।
राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।
सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।
इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।
कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।
वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।
देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।
कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।
इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।