October 12, 2025
Entertainment

जन्मदिन विशेष : जब संजय मिश्रा ने अपनी ही फिल्म के प्रीमियर में जाने से किया था मना

Birthday Special: When Sanjay Mishra refused to attend his own film’s premiere

वह अभिनेता जो पर्दे पर आते ही सीन को अपना बना लेता है, कभी ‘दुबे जी’ बनकर, तो कभी ‘बाबूजी’ बनकर। चेहरे पर एक सहज मुस्कान, आंखों में गहराई और आवाज में अपनापन। यह कोई और नहीं संजय मिश्रा हैं, हिंदी सिनेमा के सबसे अच्छे अभिनेताओं में से एक।

बनारस की गलियों से होते हुए यह शख्स नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पहुंचा, वहां से अभिनय की तालीम ली और कैमरे के सामने ऐसा निभाया कि लोग उनके फैन हो गए।

लोग कहते हैं कि वह किरदार के भीतर उतर जाने की कला में माहिर हैं। चाहे ‘गोलमाल’ में कॉमेडी की बौछार हो या ‘आंखों देखी’ में आत्मचिंतन की यात्रा, संजय मिश्रा हर भूमिका में अपने हिस्से की सच्चाई डालते हैं।

वह बड़े स्टारडम के पीछे नहीं भागते, बल्कि छोटी-सी भूमिका को भी ऐसा रंग दे जाते हैं कि याद वहीं ठहर जाती है। उनका कहना है, “अभिनय मेरे लिए नौकरी नहीं, ध्यान है।” शायद इसलिए उनके किरदार सिर्फ किरदार नहीं, पर्दे पर जीवित होते दिखाई देते हैं।

6 अक्टूबर 1963 को जन्मे संजय मिश्रा भारतीय सिनेमा के उन चुनिंदा अभिनेताओं में से हैं, जिन्होंने अपनी दमदार अभिनय क्षमता और बेमिसाल कॉमिक टाइमिंग से एक अलग पहचान बनाई है। संजय मिश्रा ने टीवी से लेकर बड़े पर्दे तक अपने अभिनय का जादू फैलाया है। वह सिर्फ ‘कॉमेडियन’ नहीं बल्कि ‘कैरेक्टर आर्टिस्ट’ के प्रतीक माने जाते हैं, जो हर फिल्म में अपनी सादगी, गहराई और ईमानदारी का रंग भरते हैं।

उनकी कुछ यादगार फिल्में हैं ‘गोलमाल’, ‘धमाल’, ‘आंखों देखी’, ‘मसान’, ‘कड़वी हवा’, ‘किक’, और ‘सन ऑफ सरदार 2’।

संजय मिश्रा की फिल्म ‘आंखों देखी’ से जुड़ा एक किस्सा अनूठा है। इस फिल्म के किरदार से वह ऐसे जुड़े थे कि मूवी बनने के बाद प्रीमियर में जाने से मना कर दिया था।

फिल्म ‘आंखों देखी’ (2014) में उनका किरदार राजे बाबू, सिर्फ एक भूमिका नहीं थी, यह उनके व्यक्तित्व का विस्तार बन गया था। एक ऐसा किरदार जिसने उन्हें समीक्षकों की नजर में रातों-रात नया मुकाम दे दिया।

‘आंखों देखी’ फिल्म की कहानी एक ऐसे व्यक्ति राजे बाबू के बारे में है, जो यह तय करता है कि अब से वह केवल उन्हीं बातों को सच मानेगा, जिन्हें उसने खुद अपनी आंखों से देखा है।

इस किरदार की सादगी और उसका अनोखा नजरिया संजय मिश्रा के मन में इतनी गहराई तक उतर गया था कि वह फिल्म की शूटिंग के बाद भी उसे जीते रहे।

जब फिल्म ‘आंखों देखी’ के प्रीमियर और स्पेशल स्क्रीनिंग का समय आया, तो सभी कलाकारों को उम्मीद थी कि संजय मिश्रा भी अपनी इस खास फिल्म के लिए वहां पहुंचेंगे। लेकिन, उन्होंने इवेंट में जाने से साफ इनकार कर दिया। जब उनसे इस फैसले की वजह पूछी गई, तो उन्होंने एक ऐसी बात कही, जिसने सबको चौंका दिया।

उन्होंने कहा, “मैं इस फिल्म को एक आम फिल्म की तरह नहीं देख सकता हूं। अगर मैं ‘राजे बाबू’ बनकर फिल्म देखने जाऊंगा, तो मुझे लगेगा कि मैं एक झूठ देख रहा हूं।”

संजय मिश्रा का कहना था कि यह फिल्म एक ऐसी चीज है, जिसे उन्होंने खुद ‘देखी’ नहीं, बल्कि ‘जिया’ है। उनका यह फैसला उनकी कला के प्रति अटूट ईमानदारी और समर्पण को दिखाता है। यही कारण है कि ‘राजे बाबू’ का किरदार इतना सच्चा और यादगार बन पाया, जिसने उन्हें ‘फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड’ से सम्मानित कराया और भारतीय सिनेमा के बेहतरीन अभिनेताओं में शुमार कर दिया।

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