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नीलोखेड़ी में खोई जमीन वापस पाने के लिए भाजपा, कांग्रेस कड़ी मेहनत कर रही हैं

BJP, Congress working hard to regain lost ground in Nilokheri

करनाल जिले की पांच विधानसभा सीटों में से एक नीलोखेड़ी विधानसभा सीट पर आगामी चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवारों के जीतने का रिकॉर्ड रहा है। 13 में से पांच चुनाव निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीते हैं।

इस बार दोनों प्रमुख पार्टियां अपनी खोई राजनीतिक जमीन वापस पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। कांग्रेस ने आखिरी बार 2005 में यह सीट जीती थी, जबकि भाजपा ने 2014 में जीत हासिल की थी। इस चुनाव में भाजपा ने 2014 में सीट हासिल करने वाले पूर्व विधायक भगवान दास कबीरपंथी को मैदान में उतारा है

। वहीं, कांग्रेस ने 2019 के चुनाव में जीते पूर्व निर्दलीय विधायक धर्मपाल गोंदर पर भरोसा जताया है। मुकाबला कांटे का होने की उम्मीद है, क्योंकि कबीरपंथी और गोंदर पांच साल बाद एक बार फिर आमने-सामने हैं। 2019 में कबीरपंथी ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जबकि गोंदर निर्दलीय थे, जिन्होंने महज 2,222 वोटों के मामूली अंतर से सीट जीती थी।

नीलोखेड़ी में प्रचार के दौरान भाजपा प्रत्याशी भगवान दास कबीरपंथी।
इस निर्वाचन क्षेत्र में नीलोखेड़ी, तरौरी, निसिंग, निग्धु जैसे प्रमुख कस्बे और 76 गांव शामिल हैं। सभी उम्मीदवार ग्रामीण और शहरी मतदाताओं से संपर्क करके जीत हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। मौजूदा परिदृश्य से पता चलता है कि भाजपा और कांग्रेस का दबदबा है, जबकि अन्य दल भी मैदान में हैं। इनेलो-बसपा ने बलवान सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) ने अमर सिंह को मैदान में उतारा है।

कांग्रेस उम्मीदवार के लिए एक बड़ी चुनौती पार्टी के भीतर से ही आ रही है। पूर्व विधायक राज कुमार वाल्मीकि और राजीव गोंडर, दोनों ही कांग्रेस के बागी हैं, वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे वोटों में विभाजन हो सकता है और चुनाव और भी अप्रत्याशित हो सकता है।

उम्मीदवारों ने घर-घर जाकर तथा नुक्कड़ सभाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रचार अभियान तेज कर दिया है। भाजपा के कबीरपंथी पिछले एक दशक में भाजपा सरकार की उपलब्धियों को उजागर करके वोट मांग रहे हैं। उन्होंने पार्टी के विकास एजेंडे पर जोर देते हुए कहा, “भाजपा सरकार ने ‘हरियाणा एक, हरियाणवी एक’ के विजन के साथ जबरदस्त काम किया है। हमने ‘पर्ची और खर्ची’ (सिफारिश और रिश्वत) प्रणाली को समाप्त कर दिया है और योग्यता के आधार पर नौकरियां प्रदान की हैं।

हमारी सरकार शासन में पारदर्शिता लेकर आई है।” इस बीच, कांग्रेस उम्मीदवार धर्मपाल गोंदर निर्वाचन क्षेत्र की भाजपा द्वारा की गई उपेक्षा को उजागर करके मतदाताओं से अपील कर रहे हैं। गोंदर ने कहा, “एक निर्दलीय विधायक होने के बावजूद, मैंने नीलोखेड़ी में विकास लाने के लिए कड़ी मेहनत की। हालांकि, भाजपा सरकार ने इस क्षेत्र की जरूरतों को लगातार नजरअंदाज किया है।”

उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान नीलोखेड़ी को उपमंडल का दर्जा दिलाने की अपनी उपलब्धि पर प्रकाश डाला। अपने अभियान के दौरान गोंदर ने कांग्रेस के घोषणापत्र पर भी प्रकाश डाला, जिसमें 6,000 रुपये की सामाजिक कल्याण पेंशन, युवाओं को नौकरी और अन्य वादे किए गए हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि नीलोखेड़ी के मतदाता पार्टी से ज़्यादा उम्मीदवार की योग्यता को प्राथमिकता देते हैं, जिसके कारण निर्दलीय उम्मीदवारों को लगातार सफलता मिलती रही है। जय सिंह राणा के नाम चार बार विधायक चुने जाने का रिकॉर्ड है, जिसमें दो बार निर्दलीय विधायक चुने गए हैं।

राजनीतिक विश्लेषक और डीएवी कॉलेज, करनाल के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बलराम शर्मा ने कहा, “फिलहाल यहां राष्ट्रीय पार्टियों- भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच मुकाबला दिख रहा है। जातिगत कारक निर्णायक भूमिका निभाएगा। इस निर्वाचन क्षेत्र में रोर समुदाय के अधिकतम मतदाता हैं, जो इस बार चुप दिख रहे हैं। ब्राह्मण, पंजाबी, सिख और अन्य लोगों का मतदान रुझान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।”

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