हैदराबाद, 17 मार्च । लोकसभा चुनाव से पहले बीआरएस विधायक दानम नागेंद्र रविवार को कांग्रेस में शामिल हो गए। राज्य में कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने के बाद दानम नागेंद्र इसमें शामिल होने वाले पहले बीआरएस विधायक हैं।
यह दानम नागेंदर के लिए घर वापसी है। वह 2009 से 2014 तक संयुक्त आँध्र प्रदेश में कांग्रेस सरकार में मंत्री थे। वर्ष 2018 में टीआरएस (अब बीआरएस) में शामिल हुए और खैरताबाद से विधायक बने। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर उन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी।
चेवेल्ला से सांसद रंजीत रेड्डी और हाल ही में हैदराबाद के खैरताबाद निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए चुने गए नागेंद्र रविवार को मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी और तेलंगाना के लिए एआईसीसी प्रभारी दीपा दासमुंशी की उपस्थिति में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए।
दोनों बीआरएस नेता उस दिन कांग्रेस में शामिल हुए हैं जब पार्टी ने सत्ता में 100 दिन पूरे किए। राज्य में 10 साल तक शासन करने के बाद कांग्रेस के हाथों सत्ता गँवाने वाली बीआरएस ने 119 सदस्यीय विधानसभा में 39 सीटें जीती थीं।
चेवेल्ला सीट से दोबारा नामांकन नहीं मिलने के बाद रंजीत रेड्डी पार्टी नेतृत्व से “नाखुश” थे। बीआरएस अध्यक्ष के.चंद्रशेखर राव को संबोधित अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि राज्य में मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उन्हें वैकल्पिक रास्ता अपनाने का कठिन निर्णय लेना पड़ा।
बीआरएस ने पहले ही हैदराबाद के आसपास के विधानसभा क्षेत्रों वाले निर्वाचन क्षेत्र चेवेल्ला के लिए कसानी ज्ञानेश्वर मुदिराज को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। उन्होंने पिछले साल नवंबर में विधानसभा चुनाव से पहले बीआरएस में शामिल होने के लिए तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) से इस्तीफा दे दिया था।
कांग्रेस पार्टी ने चेवेल्ला से पूर्व मंत्री पटनम महेंदर रेड्डी की पत्नी पटनम सुनीता रेड्डी के नाम को मंजूरी दे दी थी, लेकिन अंतिम समय में उनकी उम्मीदवारी रोक दी गई थी। विकाराबाद जिला परिषद की अध्यक्ष सुनीता रेड्डी ने फरवरी में बीआरएस से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस में शामिल हो गईं थीं।
रंजीत रेड्डी पिछले एक महीने के दौरान कांग्रेस या बीजेपी के प्रति वफादारी बदलने वाले बीआरएस के पांचवें मौजूदा सांसद हैं। वह इतने ही दिनों में पार्टी छोड़ने और सत्तारूढ़ दल में शामिल होने वाले दूसरे बीआरएस सांसद हैं। शनिवार को वारंगल के सांसद पसुनुरी दयाकर ने बीआरएस से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। उन्हें भी टिकट नहीं दिया गया।