कोलकाता, 18 जनवरी । कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने गुरुवार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत पश्चिम बंगाल में फर्जी जॉब कार्डों की पहचान के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन का निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ के निर्देश के अनुसार, तीन सदस्यीय समिति में केंद्र सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कार्यालय से एक-एक प्रतिनिधि होंगे।
समिति जिलावार रिपोर्ट तैयार करेगी और इसके लिए उसके सदस्य प्रत्येक जिले के प्रत्येक उपमंडल का सघन दौरा कर सूचीबद्ध जॉब कार्डों की जांच करेंगे।
मनरेगा के तहत 100 दिन की रोजगार गारंटी योजना में पश्चिम बंगाल में अनियमितताओं को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय में दो अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। एक याचिका पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने दायर की है जबकि दूसरी कृषि श्रमिकों के संगठन पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति ने दायर की है।
मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में गुरुवार को जनहित याचिकाओं पर समानांतर सुनवाई हुई, जिसके बाद अदालत ने तीन सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया।
खंडपीठ ने कहा कि अदालत वर्तमान स्थिति जानना चाहती है, भले ही योजना के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार हुआ हो या नहीं, वास्तविक लाभार्थियों को कभी भी वंचित नहीं किया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “किसी को जिम्मेदारी लेनी होगी।”
मनरेगा को लेकर केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार काफी समय से आमने-सामने हैं।
राज्य सरकार ने जहां केंद्र सरकार पर योजना के तहत मिलने वाले केंद्रीय बकाया को अनावश्यक रूप से रोकने का आरोप लगाया है, वहीं केंद्र ने राज्य सरकार पर योजना के कार्यान्वयन में बड़े पैमाने पर अनियमितता का आरोप लगाया है।