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कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने टाटा सिंगूर मामले से खुद को अलग किया

Calcutta High Court judge recuses himself from Tata Singur case

कोलकाता, 20 फरवरी । कलकत्ता उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य ने हुगली जिले के सिंगुर में परित्यक्त भूमि पर निवेश में नुकसान के कारण टाटा मोटर्स लिमिटेड (टीएमएल) के पक्ष में दिए गए मध्यस्थता फैसले को चुनौती देने वाले पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (डब्ल्यूबीआईडीसी) के मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।

टाटा मोटर्स ने अपनी छोटी नैनो कार परियोजना के लिए पहले सिंगूर में संयंत्र लगाया था।

अब देखना यह है कि कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इस मामले को किस नई खंडपीठ को सौंपेंगे।

पिछले साल अक्टूबर में तीन सदस्यीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने राज्य सरकार को कंपनी को मुआवजे के रूप में बाकी 765.78 करोड़ रुपये और सितंबर 2016 से 11 प्रतिशत की दर से उस पर अर्जित ब्याज के देने का निर्देश दिया था।

डब्ल्यूबीआईडीसी ने फैसले को चुनौती देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख किया। मामला न्यायमूर्ति भट्टाचार्य की पीठ को आवंटित किया गया था, लेकिन सुनवाई शुरू होने से पहले ही वह इससे अलग हो गए।

उल्लेखनीय है कि 2006 में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली तत्कालीन सातवीं वाम मोर्चा सरकार ने टाटा मोटर्स द्वारा सिंगूर में नैनो परियोजना की घोषणा की थी। सरकार द्वारा परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण पूरा होने के बाद वहां कारखाना लगाने का काम शुरू हुआ।

हालाँकि, समस्या तब शुरू हुई जब भू-स्वामियों के एक छोटे वर्ग ने मुआवजे का चेक लेने से इनकार कर दिया और भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। राज्य में तत्कालीन प्रमुख विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस की नेता और मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ सिंगुर में आंदोलन का नेतृत्व किया।

बड़े पैमाने पर आंदोलन के सामने आखिरकार टाटा समूह के तत्कालीन अध्यक्ष रतन टाटा सिंगूर से हट गए और गुजरात के साणंद में संयंत्र लगाया। वर्ष 2011 में 34 साल के वाम मोर्चा शासन को समाप्त करके सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य कैबिनेट का पहला निर्णय सिंगुर में सभी भूमि मालिकों को जमीन वापस करना था।

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