कफ सिरप की गुणवत्ता और उनके अनुचित उपयोग से जुड़ी हालिया चिंताओं के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने शनिवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ एक उच्च-स्तरीय बैठक बुलाई। इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने की।
बैठक में औषधि गुणवत्ता मानकों के अनुपालन की समीक्षा की गई और विशेष रूप से बच्चों में कफ सिरप के तर्कसंगत उपयोग पर जोर दिया गया। यह समीक्षा बैठक स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के निर्देश पर आयोजित की गई, जिन्होंने इस विषय पर पहले मंत्रालय के साथ स्थिति की समीक्षा की थी।
बैठक में फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव अमित अग्रवाल, आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. सुनीता शर्मा, डीसीजीआई डॉ. राजीव रघुवंशी, एनसीडीसी निदेशक डॉ. रंजन दास सहित सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी उपस्थित रहे।
बैठक के दौरान तीन प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा केंद्रित रही। पहला, औषधि निर्माण इकाइयों में गुणवत्ता मानकों के लिए अनुसूची ‘एम’ और अन्य जीएसआर प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करना। दूसरा, बच्चों में कफ सिरप का तर्कसंगत उपयोग बढ़ाना और अतार्किक संयोजनों से बचना। तीसरा, खुदरा फार्मेसियों के विनियमन को मजबूत कर ऐसे फार्मूलेशनों की अनुचित बिक्री रोकना।
यह बैठक मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में कथित रूप से दूषित कफ सिरप से बच्चों की मौतों की रिपोर्टों के बाद बुलाई गई थी। पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) के तहत नागपुर स्थित मेट्रोपॉलिटन सर्विलांस यूनिट (एमएसयू) ने इन मामलों की जानकारी आईडीएसपी-एनसीडीसी को दी थी। इसके बाद एनसीडीसी, एनआईवी और सीडीएससीओ के विशेषज्ञों की केंद्रीय टीम ने छिंदवाड़ा और नागपुर का दौरा किया और राज्य प्राधिकरणों के साथ मिलकर जांच की।
प्रारंभिक जांच में अधिकांश नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे उतरे, लेकिन ‘कोल्ड्रिफ’ नामक कफ सिरप में डीईजी की मात्रा अनुमत सीमा से अधिक पाई गई। इसके बाद तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित विनिर्माण इकाई पर नियामक कार्रवाई की गई और सीडीएससीओ ने उसका लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश की है। साथ ही, आपराधिक कार्रवाई भी शुरू की गई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि संशोधित अनुसूची ‘एम’ का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा कि बच्चों में खांसी प्रायः अपने आप ठीक हो जाती है, इसलिए अनावश्यक दवा के प्रयोग से बचना चाहिए। इस दौरान बाल चिकित्सा आबादी में कफ सिरप के तर्कसंगत उपयोग पर डीजीएचएस द्वारा जारी परामर्श पर भी चर्चा की गई।
आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने कहा कि बच्चों को किसी भी दुष्प्रभाव से बचाने के लिए अतार्किक दवा संयोजन नहीं दिए जाने चाहिए। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया दल पहले से ही कार्यरत है, जो विभिन्न केंद्रीय संस्थानों के बीच प्रभावी समन्वय सुनिश्चित कर रहा है। उन्होंने राज्यों को किसी भी आपदा से निपटने के लिए अपनी एजेंसियों के बीच समन्वय को मजबूत करने की भी सलाह दी।
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. सुनीता शर्मा ने कहा कि बाल चिकित्सा आबादी में खांसी की दवाओं का लाभ बहुत कम होता है, जबकि जोखिम अधिक होते हैं। उन्होंने बताया कि अभिभावकों, चिकित्सकों और फार्मासिस्टों के लिए जल्द ही दिशानिर्देश तैयार किए जाएंगे और राज्यों के साथ साझा किए जाएंगे।
डीसीजीआई डॉ. राजीव रघुवंशी ने दवा निर्माण इकाइयों में गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज (जीएमपी) के मानकों का पालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता दोहराई। उन्होंने बताया कि कुछ फर्मों को बुनियादी ढांचा उन्नयन योजना के तहत दिसंबर 2025 तक की छूट दी गई है, लेकिन उसके बाद सख्त कार्रवाई की जाएगी।
राजस्थान सरकार ने बताया कि प्रारंभिक जांच में चारों मौतें कफ सिरप की गुणवत्ता से संबंधित नहीं पाई गईं, लेकिन सतर्कता बरती जा रही है और तर्कसंगत उपयोग के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि नागपुर के अस्पतालों में भर्ती बच्चों को सर्वोत्तम चिकित्सा सुविधा दी जा रही है।
बैठक में कई राज्यों ने दवा गुणवत्ता नियंत्रण और तर्कसंगत दवा उपयोग पर अपने चल रहे प्रयासों और उपलब्धियों की जानकारी साझा की। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने राज्यों को आईडीएसपी रिपोर्टिंग प्रणाली को मजबूत करने, सभी स्वास्थ्य संस्थानों से समय पर रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने और अंतरराज्यीय समन्वय बढ़ाने के निर्देश दिए।
मंत्रालय ने दवा गुणवत्ता और रोगी सुरक्षा के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता दोहराई और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए त्वरित, समन्वित और निरंतर कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
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