राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के दिवंगत नेता शहाबुद्दीन को सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले चंदा बाबू के बेटे मोनू ने अपने पिता को याद करते हुए बताया कि उनके पिता को इस बाहुबली के खिलाफ मोर्चा खोलने की कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस दौरान उनकी आंखें भी डबडबा गईं।
समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में मोनू ने बताया कि मेरे पिता ने जैसे ही शहाबुद्दीन के खिलाफ मोर्चा खोला और उसे सलाखों के पीछे पहुंचाया, उसके बाद जो कुछ हुआ, वह कोई पुरानी दुश्मनी का मामला नहीं था। बल्कि यह बदले की भावना से जुड़ा था। हालांकि, मुझे इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है। मुझे मीडिया और पिताजी के जरिए ही पता चला कि उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ कैसे मोर्चा खोला था। उस समय हम बहुत छोटे थे।
उन्होंने शहाबुद्दीन द्वारा अपने परिवार पर किए गए जुल्म-ए-सितम को याद करते हुए कहा कि उस शख्स ने तो मेरा पूरा परिवार ही उजाड़ दिया। अब मेरे परिवार में बच ही कौन गया है? मेरे बड़े भाई के नहीं रहने के बाद परिवार की छत उजड़ गई।
मोनू बताते हैं कि इस घटना के बाद हम लोगों में खौफ का आलम कुछ ऐसा था कि हम सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग गए थे। किसी का कुछ पता नहीं था कि कौन कहां पर है। पिताजी कहां पर हैं? माताजी कहां पर हैं? किसी का कोई अता पता नहीं था। एक साल के बाद मेरी मुलाकात पिताजी से हुई थी। इसके बाद उन्होंने मुझे मेरी मां से मिलवाया। इस तरह से हम सभी लोग परिवार से मिले।
इसके अलावा, जब मोनू से पूछा गया कि क्या आपको भी कभी इस मामले में धमकाया गया है, तो इस पर उन्होंने कहा कि मुझे तो अभी तक नहीं धमकाया गया है। हां, एक-दो बार मेरे पिताजी को फोन आया था। उन्हें धमकाने की कोशिश की गई थी। धमकाने वाले अक्सर मेरे पिताजी से कहते हैं कि तुम केस वापस ले लो। जवाब में मेरे पिताजी कहते हैं कि अब यह सरकारी मामला बन चुका है। ऐसी स्थिति में मैं इसमें कुछ नहीं कर पाऊंगा।
मोनू ने कहा कि मेरे पिताजी को पैसे का भी ऑफर दिया गया। कहा गया था कि आप पैसे ले लो और यह केस वापस ले लो। इसके बारे में पिताजी ने मीडिया को भी बताया था। मेरे पिता ने कहा कि अब इस कानूनी लड़ाई में मैं अपना सबकुछ गंवा चुका हूं। मेरे परिवार के कई लोग इस लड़ाई में मारे जा चुके हैं। ऐसे में अब पैसे लेने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। अब जब हम अपने परिवार के सभी सदस्यों को कानूनी लड़ाई में खो चुके हैं, तो ऐसी स्थिति में पैसा कोई मायने नहीं रखता है।
मोनू बताते हैं कि इस पूरी कानूनी लड़ाई में जिस तरह का संघर्ष मेरे पिताजी ने किया, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। मेरे दो भाइयों को पहले ही मार दिया गया। इसके बाद मेरे तीसरे नंबर के भाई को भी मार दिया गया, तो मेरे पिताजी पूरी तरह से टूट चुके थे, क्योंकि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यह हो गई थी कि वो एक तरफ जहां कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ अपने परिवार का भी पालन-पोषण कर रहे थे। इस तरह की स्थिति किसी भी पिता के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाती है। इन तमाम चुनौतियों का सामना करने के बाद मेरे पिताजी बहुत तरह की बीमारियों का शिकार हो गए थे और मेरी मां भी लकवाग्रस्त हो गई थीं। उन दिनों मेरे बड़े भाई गोरखपुर में मोबाइल की दुकान चलाते थे, तब उन्होंने मुझसे कहा कि अब मैं यहां पर रहकर क्या करूंगा। मुझे भी वहीं पर आ जाना चाहिए। इसके बाद मेरे भईया सीवान आ गए। 2014 में मेरे बड़े भइया की शादी हुई। शादी के बाद मेरे भाई की भी हत्या करा दी गई।
मोनू बताते हैं कि मुझे उतने अच्छे से नहीं पता है कि आखिर इस पूरे घटना की शुरुआत कहां से होती है? लेकिन, जहां तक मुझे पता है कि शहाबुद्दीन ने मेरे पिताजी से रंगदारी मांगी थी। लेकिन, मेरे पिताजी ने देने से साफ इनकार कर दिया था। इसके बाद शहाबुद्दीन के आदमी हमारे यहां पर आए और उन्होंने धमकाते हुए कहा कि आखिर कौन इतना बड़ा हो चुका है कि जो हमें रंगदारी देने से इनकार कर रहा है। इस बीच, शहाबुद्दीन के आदमी मेरे भाई के पास आए और उन्हें मारने पीटने लगे और कहने लगे कि यही वो आदमी है, जो रंगदारी देने से इनकार कर रहा है। चलो, इसे शहाबुद्दीन साहब के पास लेकर चलते हैं। इसके बाद मेरे बीच वाले भाई ने थाने को फोन किया, तो शहाबुद्दीन साहेब के आदमियों ने कहा कि तुम पुलिस को फोन कर रहे हो, तुम्हारी इतनी हिम्मत? तुम जानते हो कि हम किसके आदमी हैं? इसके बाद मेरे दोनों भाइयों को किडनेप कर लिया गया। इसके बाद मेरे दोनों भाइयों का कुछ पता नहीं चला।
मोनू ने आगे कहा कि इसके बाद मुझे यहां के लोगों ने सुझाव दिया कि यहां से चले जाओ। इसके बाद मैं अपनी नानी के घर पर चला गया। इस दौरान मेरे घर पर क्या हुआ और क्या नहीं, मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है। इस घटना के दो साल बाद मेरी मुलाकात पिताजी से हुई। उन्होंने मुझे सबकुछ बताया। हमारे परिवार के सभी सदस्य आपस में बिछड़े हुए थे। कोई किसी से भी नहीं मिला था। इसके बाद हम लोग एक-दूसरे से मिले। हम लोग गांव गए। हमें बहुत तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। ऐसा किसी के साथ नहीं हो।