धर्मशाला, चीन की सरकार में बैठे लोग मेरे लिए कहते हैं कि, दलाईलामा अलगाववादी नेता है। वह शांति के बजाय अशांति की बात कहते हैं। बावजूद इसके चीन में मेरे प्रति बौद्ध श्रद्धालुओं की, श्रद्धा बढ़ती जा रही है।
वे कभी नहीं मानते कि मैं कोई अलगाववादी नेता हूं। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा ने यह बात, आचार्य धर्मकीर्ति की रचना, प्रमाणवर्तिका कारिका पर, प्रवचन के दौरान कही।
दलाईलामा ने कहा कि, करुणा हम सबके स्वास्थ्य के लिए, बहुत लाभदायक है। भारत में अहिंसा और करुणा के मूल्य, कई हजार वर्षों से विद्यमान हैं। करुणा को प्रज्ञा के आधार पर आगे बढ़ाया जा सकता है न कि, श्रद्धा के आधार पर।
अहिंसा के सिद्धांत की बात करें तो अपने समय में महात्मा गांधी ने भी, अहिंसा को बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा कि, वे हर दिन सुबह उठकर बौद्ध चित्त का अभ्यास करता हूं। इससे मुझे काफी लाभ मिलता है। इससे केवल मन को शांति ही नहीं मिलती, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
दलाईलामा ने कहा कि, तिब्बत में अध्ययन की मान्यता महज पढ़ने तक सीमित नहीं थी, बल्कि प्रमाण सिद्धि के लिए, इसका महत्व रहा है। अगर ग्रंथों के अध्ययन से मन में परिवर्तन नहीं होता है, तो अध्ययन की विधि का परीक्षण जरूरी है। प्रमाण सिद्धि के लिए किया जाने वाला अध्ययन, आंखें खोलने जैसा है।