सच्ची सुरक्षा का मतलब सिर्फ़ कानून बनाना नहीं है, बल्कि हर महिला को बिना किसी डर के जीने के लिए सशक्त बनाना है।’ यह संदेश आज राजकीय कन्या महाविद्यालय, शिमला के आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ द्वारा महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से आयोजित एक दिवसीय ‘महिला सुरक्षा कानून पर कार्यशाला’ में दिया गया। कार्यशाला में राजधानी के स्कूलों और कॉलेजों के लगभग 350 विद्यार्थियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रिंसिपल डॉ. अनुरीता सक्सेना के संबोधन से हुई। इसके बाद “21वीं सदी में महिलाओं की सुरक्षा” विषय पर भाषण प्रतियोगिता हुई। प्रतियोगिता में भाग लेने वाली कॉलेज की छात्राओं ने एकमत होकर कहा कि महिलाओं का अनावश्यक यौनिकरण और वस्तुकरण तुरंत बंद होना चाहिए।
सभी इस बात पर सहमत थे कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए तथा कानूनों का सख्त क्रियान्वयन होना चाहिए।
इस कार्यक्रम में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कॉलेजों सहित शिमला और उसके आसपास के सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों और कॉलेजों के विद्यार्थी और शिक्षक उपस्थित थे।
प्रतियोगिता के बाद एक संवादात्मक पैनल चर्चा हुई, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्षरता अधिनियम (बीएसए) पर विस्तार से चर्चा की गई। पोक्सो, बाल विवाह अधिनियम 2006, पीओएसएच, साइबर अपराध, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 पर भी चर्चा हुई। दिन के कार्यक्रम में कई सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और मेजबान कॉलेज द्वारा एक नाटक भी शामिल था। स्वास्थ्य मंत्री धनी राम शांडिल इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। सचिव (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता) आशीष सिंहमार मुख्य अतिथि थे।
स्वास्थ्य मंत्री ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि नैतिक मूल्य किसी भी व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत हैं तथा बच्चों को छोटी उम्र से ही नैतिक मूल्य सिखाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, “डिग्रियों का जीवन में महत्व है, लेकिन नैतिक मूल्यों का भी। सुसंस्कृत होने से आपके लक्ष्य आसानी से प्राप्त होते हैं।” उन्होंने युवा पीढ़ी को कानूनी मामलों के बारे में शिक्षित करने के प्रयासों के लिए कॉलेज की सराहना की। मंत्री ने महिलाओं और लड़कियों की बेहतरी के उद्देश्य से विभिन्न योजनाओं और प्रमुख पहलों पर प्रकाश डाला। कार्यशाला में पैनलिस्ट कानूनी दिग्गज थे, जिनमें से ज्यादातर महिलाएं थीं, जो विभिन्न सेवाओं – प्रशासन, पुलिस और शिक्षा से जुड़ी थीं, और उन्होंने महिलाओं के कल्याण के लिए मौजूदा कानूनों और योजनाओं के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी।