कोच्चि, 7 फरवरी । केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को अपराध दर बढ़ने के बावजूद आपराधिक मामलों में फॉरेंसिक रिपोर्ट मिलने में देरी पर नाराजगी व्यक्त की।
जस्टिस सीएस डायस ने कहा, ”हम आजादी के 75वें साल में पहुंच गए हैं। जांच एजेंसियां अब अपराधों की जांच के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य और प्रौद्योगिकी पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं। ऐसे समय में, हम अपने हाथ खड़े करके कर्मचारियों की कमी और बुनियादी ढांचे की कमी का रोना नहीं रो सकते।”
उन्होंने कहा, ”हाल के वर्षों में अपराधों में तेजी से वृद्धि हुई है। अब समय आ गया है हम यह सुनिश्चित करें कि न्याय प्रदान करने के लिए सुविधाएं स्थापित की जाएं, विशेष रूप से अभियुक्तों को तुरंत सुनवाई का अधिकार दिया जाए।”
यदि वर्तमान मामले की तरह वैज्ञानिक विश्लेषण में ज्यादा देरी होती है तो आरोपी इसे बचाव के रूप में ले सकता है, और यह व्यापक सार्वजनिक हित के लिए हानिकारक होगा।
जस्टिस डायस ने पश्चिम बंगाल के एक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार करते हुए यह बात कही, जिस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या का आरोप लगाया गया है। याचिकाकर्ता ने निर्दोष होने का दावा किया है।
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने अपराध की गंभीरता का हवाला देते हुए उसकी जमानत याचिका का विरोध किया और यह भी आरोप लगाया कि आरोपी के भागने का खतरा था। जिसके बाद अदालत ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) से मुकदमे की स्थिति के संबंध में रिपोर्ट मांगी। हालांकि, एएसजे ने फॉरेंसिक रिपोर्ट के अभाव के कारण देरी की सूचना दी।
जब जांच अधिकारी और फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) के निदेशक ने हाईकोर्ट को बताया कि देरी मामलों के बैकलॉग और कर्मचारियों की कमी के कारण हुई है। तो, अदालत ने कहा कि एफएसएल के निदेशक द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण कि चार साल की अत्यधिक देरी पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों की भारी आमद के कारण हुई, और कर्मचारियों की कमी इस अदालत को पसंद नहीं आ रही है क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित त्वरित और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है।
याचिकाकर्ता की हिरासत अवधि को स्वीकार करने के बावजूद, हाईकोर्ट ने जोखिम के कारण जमानत से इनकार कर दिया।