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मप्र में पकड़े गए साइबर ठग, 10 हजार में करते थे फर्जी बैंक खाते का सौदा

Cyber ​​​​thugs caught in Madhya Pradesh, used to deal in fake bank accounts for Rs 10,000

भोपाल, 19 नवंबर । मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पकड़े गए साइबर ठगों के गिरोह ने बड़ा खुलासा किया है कि वे फर्जी बैंक खातों को दूसरे गिरोह को 10 हजार रुपये में बेचा करते थे।

राजधानी की पुलिस के हाथ ऐसे साइबर ठग गिरोह के सात सदस्य आए हैं जिसने 1800 फर्जी बैंक अकाउंट बनाकर बड़े साइबर ठगों को बेचा था। इस गिरोह द्वारा भोपाल से पहले इंदौर, लखनऊ, मुंबई, अहमदाबाद शहर में रहकर फर्जी अकाउंट बनाए गए है। पुलिस को जांच में इस बात की जानकारी मिली है कि इस गिरोह के अधिकांश सदस्य मूल रूप से बिहार के निवासी हैं और वे फर्जी आधार कार्ड और अन्य दस्तावेजों के जरिए बैंकों में खाते खोलते थे और बाद में उसे साइबर ठगों को 10 हजार रुपये में बेचा करते थे। पुलिस को इनके पास से फर्जी आधार कार्ड भी मिले है।

ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश में साइबर ठगों की कई वारदातें सामने आ चुकी है, इसी क्रम में भोपाल पुलिस की साइबर ठगों के गतिविधियों पर रखी जा रही पैनी नजर के चलते बीते दिनों एक गिरोह पकड़ में आया। इसके सात सदस्य पुलिस की गिरफ्त में हैं। भोपाल में पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्रा के मुताबिक पुलिस की गिरफ्त में जो गिरोह आया है उससे पता चला है कि उन्होंने हजारों मोबाइल सिम हासिल करने के साथ हजारों बैंक अकाउंट भी खोले हैं। इन बैंक खातों को बड़े गिरोह को 10 हजार रुपये में बेच दिया करते थे। अब पुलिस उन लोगों की तलाश में लगी है जिन्होंने इन बैंक खातों का उपयोग किया है। आने वाले समय में पुलिस बड़े आपराधिक गिरोह तक भी पहुंच सकती है।

पुलिस कमिश्नर के अनुसार इस तरह की वारदातों में पुलिस के सामने सबसे बड़ी समस्या यह आती है कि जब मोबाइल सिम और बैंक खाते वाले के पास पुलिस पहुंचती है तो संबंधित को यह पता ही नहीं होता कि उसके नाम पर बैंक खाता है। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि कहीं इन बैंक खातों को बनवाने में बैंक कर्मी की भी तो भूमिका नहीं है। इसके लिए बैंकों के अधिकारियों के साथ बैठक भी की जाने वाली है।

आधार सेंटर के कर्मचारी श्यामलाल राजपूत बताते हैं कि आधार कार्ड शासन की ओर से निर्धारित प्रपत्र जैसे वोटर आईडी, पैन कार्ड, सरकारी कर्मचारी का परिचय पत्र के आधार पर बनाए जाते हैं। अगर यही दस्तावेज फर्जी तरीके से बने हैं तो आधार कार्ड बन जाता है। इन दस्तावेजों की सत्यता जानने की तकनीक स्थानीय स्तर पर नहीं है। दस्तावेज का परीक्षण दिल्ली कार्यालय से ही होता है। इसके साथ अगर विधायक या सांसद की संस्तुति पर आवेदन आते हैं तो भी आधार कार्ड बन जाते हैं।

पुलिस की गिरफ्त में जो आरोपी आए हैं वे 4 से 12वीं तक ही पढ़े हैं मगर वे साइबर ठगी के मास्टर हैं। वे योजनाबद्ध तरीके से महज कुछ माह ही एक शहर में रहा करते थे। भोपाल में भी किराए के मकान में डेरा डाले थे और कुछ दिनों में ही यहां से भागने की फिराक में थे मगर पुलिस की पकड़ में आ गए।

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