August 14, 2025
National

दादा भाई नौरोजी : भारत के पहले सपूत, जो ब्रिटिश संसद में पहुंचे और आजादी की नींव रखी

Dadabhai Naoroji: The first son of India who reached the British Parliament and laid the foundation of independence

देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में जिन महान नेताओं ने बौद्धिक और राजनीतिक चेतना का दीप जलाया, उनमें दादा भाई नौरोजी का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। वह आजादी की नींव रखने वाले उन विचारकों में से थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ तर्क, आंकड़े और आत्मसम्मान के साथ संघर्ष किया। ‘भारत का वयोवृद्ध पुरुष’ कहे जाने वाले नौरोजी का जीवन एक मिसाल है। उन्होंने शिक्षा से लेकर संसदीय राजनीति और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना तक, हर मोर्चे पर नेतृत्व किया।

दादा भाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर 1825 को बम्बई (अब मुंबई) में एक पारसी परिवार में हुआ था। बचपन से ही मेधावी नौरोजी की शिक्षा एलगिन स्कूल और फिर बम्बई के एल्फिंस्टन कॉलेज में हुई, जहां वे गणित और प्राकृतिक विज्ञान में विशेष रुचि रखते थे। वे एल्फिंस्टन कॉलेज में गणित के पहले भारतीय प्रोफेसर बने। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, जब अंग्रेजों के वर्चस्व वाले शैक्षणिक संस्थानों में भारतीयों को शिक्षा देना तक मुश्किल था।

नौरोजी 1855 में व्यापार के सिलसिले में पहली बार इंग्लैंड गए, लेकिन उनका उद्देश्य महज व्यापारिक नहीं था। वह ब्रिटेन को भारत की स्थिति से अवगत कराना चाहते थे। 1865 में उन्होंने ‘ईस्ट इंडिया एसोसिएशन’ की स्थापना की। यह भारतीयों के अधिकारों के लिए ब्रिटेन में बनाई गई पहली संस्था थी।

1886 में उन्होंने ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स का चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहे। फिर 1892 में लिबरल पार्टी की ओर से उन्होंने सेंट्रल फिन्सबरी सीट से जीत दर्ज की और ब्रिटिश संसद में पहुंचने वाले पहले भारतीय बने। संसद में उन्होंने भारत में गरीबी, ब्रिटिश शोषण और ‘धन के बहिर्गमन’ जैसे मुद्दों को जोरदार ढंग से उठाया। उस जमाने में उनका एक बयान “ब्रिटिश राज भारत की दौलत को चुपचाप निचोड़ रहा है” काफी प्रसिद्ध हुआ था।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में नौरोजी भी शामिल थे। उन्होंने तीन बार कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला। वह 1886, 1893 और 1906 में कांग्रेस अध्यक्ष रहे। खासतौर पर 1906 के कोलकाता अधिवेशन में उन्होंने पहली बार “स्वराज” (स्व-शासन) की मांग को कांग्रेस के एजेंडे में शामिल किया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को निर्णायक मोड़ दिया।

नौरोजी का नेतृत्व शांतिपूर्ण, वैचारिक और तर्कशील था। उन्होंने कांग्रेस को केवल अभिजात्य वर्ग तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि जनभागीदारी के विचार को बढ़ावा दिया। वे बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी जैसे नेताओं के आदर्श भी बने।

नौरोजी ने आजादी की लड़ाई को विचार और तर्क की कसौटी पर रखा। उन्होंने “भारत में ब्रिटिश शासन और गरीबी” नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने पहली बार ‘ड्रेन थ्योरी’ प्रस्तुत की। उनका दावा था कि ब्रिटेन हर साल भारत से करोड़ों रुपए की संपत्ति अपने देश ले जा रहा है, जिससे भारत गरीब होता जा रहा है।

उनका यह कार्य भारतीयों को केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि आर्थिक और तार्किक आधार पर जागरूक करने वाला था। यह आर्थिक राष्ट्रवाद की शुरुआत मानी जाती है, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा दी।

दादा भाई नौरोजी को भारत में “भारत का वयोवृद्ध पुरुष” कहा जाता है। उनके विचारों और कार्यों ने भारत में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया।

उनकी दूरदर्शिता, धैर्य और वैचारिक स्पष्टता ने आने वाली पीढ़ियों को दिशा दी। 30 जून 1917 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रवाद की नींव में जीवित है।

Leave feedback about this

  • Service