नई दिल्ली, इंसान की परिस्थिति चाहे कितनी भी विषम हो। दृढ़ इच्छाशक्ति, कठोर परिश्रम के दम पर वह किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकता है। यह वाक्य मिल्खा सिंह ने सिर्फ कहे नहीं बल्कि अपनी चरितार्थ भी किया। विभाजन के समय पाकिस्तान से एक शरणार्थी के रूप में भारत आए मिल्खा सिंह ने अभावों के बीच एथलेटिक्स (दौड़) में जो सफलता हासिल की, उसने उन्हें देश का रोल मॉडल बना दिया।
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा, पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा) में जन्मे मिल्खा सिंह 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय एक अनाथ के रूप में भारत आए थे। बिना टिकट आने की वजह से उन्हें कुछ समय के लिए तिहाड़ जेल में रहना पड़ा था। कुछ दिन वह दिल्ली के पुराना किला स्थित शरणार्थी कैंप और फिर शाहदरा स्थित पुनर्वास कॉलोनी में भी रहे। 1951 में वह भारतीय सेना में शामिल हुए। बचपन में वह दौड़ लगाते थे लेकिन ‘दौड़ कोई खेल है और ओलंपिक जैसा भी कुछ होता है’, यह उन्हें सेना में आकर पता चला।
फिर तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और दौड़ में न सिर्फ अपना बल्कि भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन किया। 1958 एशियन गेम्स में 200 और 400 मीटर दौड़ में गोल्ड, 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड, 1962 एशियन गेम्स में 400 मीटर और 1600 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड उनके नाम रहे। 1958 में आयोजित कटक नेशनल गेम्स में भी उन्होंने 200 और 400 मीटर में गोल्ड जीता था। 1964 कलकत्ता नेशनल गेम्स में 400 मीटर में सिल्वर मेडल उनके नाम रहा था। वे 1956 मेलबर्न ओलंपिक, 1960 रोम ओलंपिक और 1964 में टोक्यो ओलंपिक का हिस्सा रहे थे। 1960 ओलंपिक में वह पदक जीतने का मौका चूक गए थे और चौथे स्थान पर रहे थे।
कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के पहले गोल्ड मेडल एथलीट मिल्खा सिंह ने 1960 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के अनुरोध पर उन्होंने पाकिस्तान के अब्दुल खालिक के साथ रेस दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया। मिल्खा सिंह की गति से प्रभावित पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ की उपाधि दी।
मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में अनेक मेडल जीते लेकिन ओलंपिक में पदक न जीत पाने का गम उन्हें पूरी जिंदगी सताता रहा। उनका सपना था कि कोई भारतीय एथलेटिक्स में ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीते। यह सपना नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में जैवलिन में गोल्ड जीत पूरा किया था। नीरज ने 7 अगस्त 2021 को गोल्ड जीता। लेकिन, मिल्खा सिंह इस गौरवशाली पल के साक्षी नहीं बन सके। कोविड की वजह से 18 जून 2021 को 91 साल की आयु में उनका निधन हो गया था।
भारत सरकार ने मिल्खा सिंह को उपलब्धियों के लिए 1959 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा था। ‘भाग मिल्खा भाग’ फिल्म उनके जीवन पर आधारित है। भारतीय सिनेमा के इतिहास की यह श्रेष्ठ बायोपिक है। जिसमें एक अनाथ बच्चे के रूप में प्रवेश से नेशनल आइकन बनने की कहानी को बयां किया गया है।