March 10, 2025
National

‘नद-नदी’ के संगम रजरप्पा में नवरात्रि पर तप-साधना के लिए जुटे देशभर के साधक-उपासक

Devotees and worshipers from all over the country gathered for penance on Navratri at Rajrappa, the confluence of ‘Nad-Nadi’.

रांची, 10 अक्टूबर । झारखंड के रजरप्पा स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ छिन्नमस्तिका मंदिर में हर साल की तरह इस साल भी शारदीय नवरात्रि पर तप, साधना और आराधना के लिए देश के विभिन्न हिस्सों के सैकड़ों साधक, उपासक, तांत्रिक और अघोरी जुटे हैं। इसके अलावा यहां हर रोज 40 से 50 हजार श्रद्धालु माता के चरणों में शीश झुकाने पहुंच रहे हैं।

पौराणिक आख्यानों के साथ-साथ साधकों-तपस्वियों की मान्यता है कि माता छिन्नमस्तिका का यह धाम असम के कामरूप कामाख्या के बाद दूसरा सबसे जागृत शक्तिपीठ है। इस शक्तिपीठ से जुड़ी धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यताएं अत्यंत विशिष्ट हैं। यहां दो नदियों दामोदर और भैरवी का संगम है। मान्यता है कि दामोदर नदी नहीं, ‘नद’ (नदी का पुरुष स्वरूप) है। भैरवी नदी के साथ इसके संगम को ‘काम’ और ‘रति’ का प्रतीक माना गया है।

संगम स्थल में दामोदर नदी के ऊपर भैरवी नदी गिरती है। कहते हैं कि यही विशिष्टता इस स्थल को तंत्र-मंत्र साधना के लिए सबसे जागृत बनाती है। इसी संगम स्थल पर स्थित है माता छिन्नमस्तिका का मंदिर, जिसे छह हजार साल पुराना बताया जाता है। यह मंदिर दामोदर संगम के त्रिकोण मंडल में योनि यंत्र पर स्थापित है, जबकि पूरा मंदिर श्रीयंत्र के आकार में है।

रजरप्पा झारखंड की राजधानी रांची से करीब 85 किलोमीटर दूर है, जहां हर नवरात्रि और अमावस्या पर पूरे देश भर से शक्ति यानी देवी के उपासक जुटते हैं। इनमें सबसे ज्यादा तादाद झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के साधकों की होती है। रजरप्पा मंदिर न्यास समिति के सचिव के अनुसार, छिन्नमस्तिके मंदिर प्रक्षेत्र में नेपाल और भूटान के अलावा जर्मनी सहित चेक गणराज्य से हर साल कई पर्यटक और श्रद्धालु पहुंचते हैं।

मंदिर के एक पुजारी शुभाशीष पंडा बताते हैं कि मां छिन्नमस्तिके को पौराणिक ग्रंथों में बताए गए 10 महाविद्या में से एक माना जाता है। यह देवी का रौद्र स्वरूप है। मंदिर में उत्तरी दीवार के साथ रखे शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए छिन्नमस्तिका की प्रतिमा स्थित है। कुछ साल पहले मूर्ति चोरों ने यहां मां की असली प्रतिमा को खंडित कर आभूषण चुरा लिए थे। इसके बाद यह प्रतिमा स्थापित की गई।

पुरातत्ववेत्ताओं की मानें तो पुरानी अष्टधातु की प्रतिमा 16वीं-17वीं सदी की थी, उस लिहाज से मंदिर उसके काफी बाद का बनाया हुआ प्रतीत होता है। मुख्य मंदिर में चार दरवाजे हैं और मुख्य दरवाजा पूरब की ओर है। शिलाखंड में देवी की सिर कटी प्रतिमा उत्कीर्ण है। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है। बाल खुले हैं और जिह्वा बाहर निकली हुई है। आभूषणों से सजी मां कामदेव और रति के ऊपर खड़ी हैं। दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना कटा मस्तक लिए हैं। इनके दोनों ओर मां की दो सखियां डाकिनी और वर्णिनी खड़ी हैं।

देवी के कटे गले से निकल रही रक्त की धाराओं में से एक-एक तीनों के मुख में जा रही है। मंदिर के गुम्बद की शिल्प कला असम के कामाख्या मंदिर के शिल्प से मिलती है। मंदिर के मुख्य द्वार से निकलकर मंदिर से नीचे उतरते ही दाहिनी ओर बलि स्थान है, जबकि बाईं और नारियल बलि का स्थान है। इन दोनों बलि स्थानों के बीच में मनौतियां मांगने के लिए लोग रक्षासूत्र में पत्थर बांधकर पेड़ व त्रिशूल में लटकाते हैं। मनौतियां पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है।

रजरप्पा में छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा, महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबा धाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं। 10 महाविद्याओं का मंदिर अष्ट मंदिर के नाम से विख्यात है। यहां काली, तारा, बगलामुखी, भुवनेश्वरी, भैरवी, षोडशी, छिन्नमस्ता, धूमावती, मातंगी और कमला की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

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