नई दिल्ली, 29 जनवरी । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को 84वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि विधायिका के अंदर व्यवधान नासूर है और इन व्यवधानों को रोकने के लिए हर संभव उपाय किया जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ”व्यवधान न केवल विधायिका के लिए, बल्कि लोकतंत्र और समाज के लिए भी नासूर है। विधायिका की पवित्रता बचाने के लिए इस पर अंकुश लगाना वैकल्पिक नहीं, बल्कि परम आवश्यकता है।”
विधानमंडलों के अंदर बहसें झगड़े तक सीमित हो गई हैं। यह ट्रेंड बेहद परेशान करने वाला है, जिस पर देश के सभी राजनीतिक दलों को आत्मनिरीक्षण की जरूरत है।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ”विधानमंडलों के अंदर बहसें झगड़े में बदल गई हैं। यह बेहद परेशान करने वाली स्थिति है। देश के सभी हितधारकों को अधिक आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है।”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विधायिकाओं में ‘अनुशासन’ और ‘शिष्टाचार’ की कमी पर चिंता व्यक्त की। यह भी चेतावनी दी कि इस गिरावट की व्यापकता विधायिकाओं को अप्रासंगिक बना रही है। हमारा संकल्प अशांति और व्यवधान के लिए शून्य स्थान रखने का होना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि इस पारिस्थितिकी तंत्र का उद्भव हमारे संसदीय लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। अपने प्रतिनिधि निकायों में जनता के विश्वास का कम होना सबसे चिंताजनक बात है, जिस पर देश के राजनीतिक वर्ग को सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि एक मजबूत लोकतंत्र न केवल अच्छे सिद्धांतों पर, बल्कि उन्हें कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध नेताओं पर भी पनपता है। पीठासीन अधिकारी के रूप में हम लोकतांत्रिक स्तंभों के संरक्षक होने की जिम्मेदारी निभाते हैं। हमारा कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि विधायी प्रक्रिया सार्थक, जवाबदेह और प्रभावी हो।
कई राजनीतिक और आर्थिक मामलों के संबंध में राय अलग-अलग होगी और होनी भी चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को सुनिश्चित करने के लिए विधायकों को संवाद, बहस, शिष्टाचार और विचार-विमर्श के 4डी में विश्वास करना चाहिए, अशांति और दरार के 2डी से दूर रहना चाहिए।